भारतीय अर्थशास्त्र की रूपरेखा (द्वितीय भाग ) | Bhartiya Arthshastra Ki Rooprekha (Dwitiya Bhaag)
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
652
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उयोग-धन्वे ; खावास्फ-विवेचन ५
रुप से झारंग नहीं श्रा था । सच् १८५३ तक रेलवे नदीं खुली थी। इसी साल
एक छोटी-सी लाइन बंबई से स्ारंभ की गई और दूसरे वर्ष सन् १८५४ मं एक
द्ौर'लाइन हावदा से सानीयंज् के कोयले की रनों तक शुरू हुै। इसके बाद
रेलवे लाइनें नल्दी-जल्दी खोली जाने लगीं श्रौर इसके परिंशाम स्वलूप कोयले
के उद्योग का प्रसार भी हुआ | सच १८६० तक मारत में कोयले का कुल
उत्तादन २० लाख टन से मीं अधिक होगया 1
कोयले के उद्योग के विकास आर रेलवें के विस्तार होते से भारतीय फैक्टरी-
उद्योग के मार्ग को कुछ प्रारंभिक कठिनाइयां समाप्त हुई । कलकत्ते के पाल
जो श्वाश्रोरेहट भिल्मः १६ वीं शतान्दी के ररम मे स्थापित हुड ह तो सफलं
नहीं हुई, पर स् १५९ मँ सी° एनम डावर सलाम के एक पारसी सम्जत ने
सवते पडली सफल सूती कपड़े की मिल की स्थापना की | शुरूशुरू में मिलों की
संख्या धीरे-धीरे बढ़ी । सन, १८६० में कपास > व्यापार में आरंभ दोने वाली
तेली जव समाप्त दोग तो कपड़े के मिलों की संख्या काफी वढ पाई । पटसन
कातने की सबने पढली मिल एक ग्रेन ने उन्. १८५५ मं सिरामपुर ( कलकता)
के निकट र्शिरा नामक स्थान में स्वापित को | इसके ठीक चार वर्ष बाद
कलक्स के पाम दी शक्ति से चलने बाली पडली घुनाई को फैक्टरी भी कायम
हुई । इस प्रहार २६ वीं. शत्ताव्दी के मध्य तक विदेशियों के प्रयत्न से भारत में
एक-दो श्राधनिक उद्योगों का आरंम हुश्ना किन्दु प्रयत्ति बहुत धीमी श्रोर
असंत्रोपजनक थी |
च(च्रींगिक अवनति की श्योर देश का ध्यानः--६ थीं शताल्दी की
पिछली दो दशाब्दियों में राजनैतिक चेतना के साथ-साव देश के नेताओं श्रीर् ,
श्रर्थशास्त्रियों का ध्यान हमारी औदयोगिक श्रबनति की श्रोर भी गया ? दादा,
माई नौारोजी श्रौर सना से तो यहाँ तक कहा कि यह मारी श्रौद्योणिक
अवनति का डी कारण हे कि देश को पायः झअकालों का सामना करना पढ़ता
है श्र आम जनता निर्धनता की चकही में पिसी जा रदी दे । सच १८८ के
अकाल कमीशन ने भी यहीं राय दी कि भारत में यार-वार काल पद्मक
एक सुख्य कारण चदद हैं कि उसका झार्थिक जीवन एक मात्र खेती पर. शित
है} सन् ६६०१ क ्रक्राल कमीशन नेमी इसी किर परजोरर्दिया शरीर
देश के झ्च्योगीकरण पर चाह किया । भारतीय श्र्थशास्त्रियों से इस विचार
की कि प्रकृति ने भारत को एक कृप्ि-मघान राष्ट्र दी बनाया है झसत्वता अकद
करना श्ारंम की | थोड़े से समय में जापान में जिच तौव गति से ब््रौद्योणिक
विक्स ह्या उरते मी मादि छथि लवन कै कमनो को र्ट कर दिया}
User Reviews
No Reviews | Add Yours...