जैन धर्म में तप स्वरुप और विश्लेषण | Jain Dharam Me Tap Savrup Or Vishleshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Dharam Me Tap  Savrup Or Vishleshan by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

Add Infomation AboutMishrimal Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ ९ 1 है, किन्तु उनके मन को बुढापा नहीं आया है, लगता है भायेगा भी नहीं ! युवकों जैसी कार्येशक्ति उनमें देखी जाती है, जो हर किसी के लिए सुरतिमती प्रेरणा है। श्री मरुघर केसरी जी म. ने साहित्य के क्षेत्र में भी काफी कार्य किया है। पथ्य व गद्य में उनकी अनेक रचना एं प्रकाश में था चुकी हैं । इन रचताओं में भी छनका वही जन्मजात भौज मुखरित रहता है । सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना के स्वर भी उनकी कृतियों में गू जते हुए सुनाई देते हैं । प्रस्तुत पुस्तक उनकी साहित्य मणिमाला की एक जाज्वल्यमान मणि है । भव तब प्रकाशित कृतियों में इसका कुछ विशिष्ट स्थान है! उनके जीवन के लंबे अनुभवों मौर विचारों का दिव्य रूप भी उक्त पुस्तक में निखरा हुआ मिलता है । मैं आशा करता हूं, भोर गाणा ही नहीं मंगलकामना करता हूँ, कि श्री ससधर केसरी जी चिरायु हों, और उनके द्वारा यथावसर भविष्य के क्षणों में महत्व पूर्ण उपलब्धियां जिन शासन को मिलती रहें । प्रस्तुत पुस्तक के विपय में एक वात गौर कहना चाहुँगा, इसका संपादन श्री श्रीचन्द सुराना 'सरस' ने किया है । 'सरस' जी बस्तुतः सरस है, उनके हाथों से जो भी चीज छू जाती है, वह सरस हो जाती है । संपादन कला में तो मुझे कहना चाहिए--वे पारंगत हैं । उनके दारा अनेक रचनाएं संस्कार- परिष्कार पा चुकी हैं और वे साहित्य के क्षेत्र में अभिनंदनीय हुई हैं । श्री 'सरस' जी मेरे निकट के सहयोगी हैं, उन्हें मैंने निकट से देखा है ! देखा ही नहीं, परखा भी हि । जैन समाज उनकी सेवाएं प्राप्त करता रहे भौर हमारा जैन साहित्य आधुनिक साज-सज्जा, संस्कार-परिष्कार के साथ जन मन को प्रमुर्दित करता रहे--यही मंगल कामना ! विजयादशभी जैनभवन, मोती कटरा --उपाध्याय अमरमुनि आगरा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now