अंगारों में फूल | Angaron Me Phool
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)में डूब मरना चाहिए ।
“वासुदेव ! वासुदेव !” आवाज सुनकर ज्यों ही वासुदेव ने द्वार सोला,
तो चौवाकर पीछे हट गया ! आप कौन *”
प्रत्पुत्तर में आगन्तुक ठहाका लगा उठे । हसी सुपरिचित थी ।
अव वासुदेव ने अपने भाइयों को पहचाना । दामोदर व वालकृप्ण
वेदाभूपा ओर आवाज बदल तेने में बहुत कुशल थे ।
वासुदेव को विस्मित देख दामोदर वोला, “क्यो, पहचाना नहीं
तुमने भी * वाह ! आज तुम भी मात या गए ।” दामोदर ने एक
भीर ठह्दाका लगाया । वह आंगन पार कर भीतर की ओर चला, तो
चालकृप्ण व वासुदेव पीछे थे ।
वांसुरेव की उत्सुकता अब मूक न रह सकी, “भैया ! आज भौर
विसकों मात दी है ? कहा से भा रहे हो ?”
समय दामोदर फिर हम पढ़ा, “आज सडे-्सविस की
डइचेनसबिस करके आ रहा हू ।”
“यह कंसे *” वासुदेव का किशोर मन अभी भी समक्त ने पाया
था । उसके चेहरे पर प्रश्न चिल्ल बना देख वालकृप्ण ने स्पप्ट किया,
“सरे, चौ थोरट-वेलिकर नामक नये-नये ईसाई वने हैं न***आज उन्ही-
की मरम्मत की है***””
“मरम्मत नही, शुद्धि कहो धुद्धि ! अब “इंडियन को गाली देने मे
पहले उन्हे दस वार अपने दुपते अग सहलाने पड़ेंगे !”
“वाह | मैया ! आज तो मजा था गया ।” हप॑ से उछलकर
यासुदेव भैया से लिपटने लगा, परन्तु दामोदर तुरन्त दूर छिटक गया--
“अरे ठहर मुझे छुना नहीं ! पहले उस मलेच्छ की छत तो उतार
च्छि! और वह भागकर स्नानागार में घुस गया ।
वायुदेय अभी अठारद वर्पीय विद्योर ही था । परन्तु कब का
सक्रिय सदस्य होने से उसके विचार काफी परिपक्व हो चुके थे । दो
ईसाधयों के मैया के हावों पिटने की कत्पना ने उसके किदोर सम को
बा
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