ब्रह्मचर्य - जीवन | Brahmacharya Jivan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वर्तमान श्रवस्था हद के पहले सारे संशयों को दूर कर देना चाहिए। संशय के दर दोनें के साथ-दी-साथ ज्ञान श्पने श्राप जग जायगा । यदि हम मनुष्य हैं तो हमें श्रपने इस प्राकृतिक ढग से ज्ञान को जगानें का उसी ततरदद श्ववश्य प्रयत्न करना चाहिए जिस भाँति शरीर की रक्षा के लिए झन्न अत्यन्त श्रावश्यक है । यदि दमारे ज्ञानरूपी सारथी ने हमारे मनरूपी घोड़े को घ्पुचछो तरह पकड़ रक्खा है तो वदद कभी व्यसिचार्‌ श्मौर पाप की शोर श्रम्रसर नहीं दो सकता । उसके सदाचार के चाबुक हमें सदेव विवश किये रहेगे । फिर उस समय इमारे जीवन का अस्तित्त्व पाप में न जल सकेंगे हमारे शरीर की शक्तियाँ जवानी में दी दमें छोड़कर न चली जायँँगी दम दुनियाँ में कुछ काम कर सकेंगे श्र ससार मरने पर उसके लिए हमारा चऋणी रहेगा । प्राचीन काल्त मे भारत की इसी पवित्र भूमि मे ऐसे ब्रहुत से प्राणी थे जिन्होंने शरीर की अवस्थाद्मो को भी श्पने वश में कर लिया था ध्पने _श्मखण्ड प्रताप से सारे संसार ब्र्चयं का. तक को चमत्कृत कर दिया था । पर इसका क्या मददत्व.... कारण था ? वे भी तो धश्रादमी थे | दमारी ही भाँति उनके भी दो पैर श्गौर दो दाथ थे किन्तु वे हसारी तरदद श्रज्ञान न थे। उनकी सानसिक शक्तियाँ अशिक्षा श्रोर अन्ध मींवना के श्रन्घकार में नहीं पड़ी थीं । उन्होंने ्पने प्राकृतिक ज्ञान को जगाकर छापने हृदय में मानवी-शक्तियों का संचय कर लिया था । उनका त्रह्लचये इतना बढ़ा-चढ़ा हुभ्रा था कि उसके प्रतापु से. लोग काँप जाते थे | सानव शरीर में ब्रह्मचयं श्रर्थात वीयं-घारण ही एक झ्रद्धुत बल है । यही उसका तेज है यद्दी उसका अस्तित्व है | लिसने ज्रह्मचयं-त्रत का पालन करके पने को शक्तिमान बना लिया उसके लिए संसार में किसी दूसरी शक्ति की ्ावश्यकता नहद्दीं चह अपनी केवल इसी एक शक्ति से सारे ससार को दिला सकता है मददाभारत के वीर-पुंगब॒ बाल-न्रह्मचारी भीष्स का नाम भी




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