लोकलाज | Loklaj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लोकलाज ५
से बोली--'तो थ्रब इसके चाने का क्या होगा ? कोई चिट्ठी नहीं, पत्री
नहीं । घड़ाम से थ्रा पड़े ।”
'हम बतायें, क्या नाम ।'
'तू कया बतायेगा, जो है सो--भोलाने माधोको डांटते हुए
कहा--बीबी जी, जो है सो सोहल और पपड़ी बेकार थोड़े ही
जायेगी !'
'हां यह ठीक है'--महामाया ने बचाव का साधन निकलता देख
हांजी भरी । रेखा का मन रो रहा था कि उसके घर का एक. आदमी
या है श्ौर उसे बीस दिन की बासी सोहल और पपड़ी मिलेंगी ।
माधो ने कहा--'बया नाम, हमारी भी तो बात सुनो ! हम लाये
हैं टेटे में बांध के । खा लेंगे श्रौर सो रहेंगे । एक दिय ही की तो
नात है ।'
महामाया ने पुछा--' क्या खाने को भी मालकिन ने मना कर
दिया है।'
उसने उत्तर दिया, नाहीं, हम, क्या नाम है ? रेखा को समभते
हैं छोटी बहिन तो भला कोई छोटी बहिन के यहां खाता है । मालकिन
ने खुब रेंट में बांध दिया है । चार छर दिन तो शायद पार हो ही
जायें ।'
वाहं --'
रेखा कौ लगा जैसे महामायः सास, मां ओरत न होकर सिं
वाह् है । विधवा होने के नाते जरूर मांग हीं भरतीं, लिपिस्टिक
नहो लगाती --किन्तु फिरभीवे क्या काम दुनिया से श्रलग करती
हैं । रंखा के जेवर घिसने के डर से उततरवा लिये किन्तु रब मी हाथों
में सोने की. चूड़ियां भनभनाती है ? तस्त सिफ॑ माला फेरते वक्त ही
इस्तेमाल ही करती हैं ।
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