योग - दर्पण | Yog-darpan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वाडमुखम्‌ १७७ है । योग-विद्या सावंभीमिक विदा दै। इसमें किसी देश किसी जाति किसी धर्म के बंधन नहीं हैं । यह सभी के लिये है । योग आपको कोरी परलोक की बातें बताकर सन- सममोता नहीं करता । वह आपको जटिल मानसिक प्रश्नों की उलभान सुलभाने को नहीं कद्दता । वह श्ापकों कोरी पाठ- पूजा में लगाकर यह नहीं कह देता कि इसका कल परलोक में सिलेगा । योग कोरा वितंडावाद नहीं है । वह है एक बत्यंत प्रायोगिक विद्या जिसके सीखते ही फल-सिद्धि की आशा बैंध जातो है । भवन -निर्माण-कला संगीत शिल्प चित्र-लेखन-कला श्ादि के समान वह भी तत्काल फल देने- बाली एक कला है। यदि आप स्कूल-कॉलेजों में लड़कों को तरह-तरह के व्यायाम खेल तथा सैनिकों को शसख्त्र-विद्या सिखाने से कोई लाभ समभकते हों तो इससे दसगुना लाभ इन्हें योग-साधन सिखाने से समसिए । पूर्वोक्त क्रियाओं से तो केवल शारीरिक बल छोर स्वास्थ्य की कुछ व्रृद्धि होतो है लेकिन योग-साधनों के सीखने और अभ्यास करने से शरीर मन छोर बुद्धि इन तीनों की शक्तियों को विकास होता है जिससे ्ापको स्वास्थ्य-बृद्धि नोरोगता दोर्घायुवा ही नहीं होती बल्कि झापका उन सानसिक शक्तियों पर अधिकार हो जाता है जिनके द्वारा आप घर-बैठे सब जगह का हाल




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