वनस्पति शास्त्र | Shastra Of Vanaspati
श्रेणी : भूगोल / Geography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.44 MB
कुल पष्ठ :
538
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विपप प्रदेश
न.
चारों तरफ से कीड़े के ऊपर मुडते हूं ओर उसे
जकड़ लेने हैं। इसी प्रकार बीनस फडाई ट्रेप किक शक है, जो एक
दूसरा कोटाहारी पादप हूँ, के पश्रदड को जब कोई कीड़ा छूता हूं तो वह तुर्स्त
बन्द हो जाता है। बहुत पौधों की पत्तियां घाम को प्रकाथ छुप्त होने पर बन्द
हो जाती हूं और फिर श्रात.काल सुन जाती हूं। यह निदा गति. (5६८छ
हूं। जन्दुओं में पोर्षों से अधिक प्रत्यक्ष
होती है ।
७. सजीव तथा निर्जीव में फट(९४८ट पट
छिट थे निर्जीव में निरदेश अन्तर
(उ050प(८ पेपीटाटाइटटड) मानूम करना अति कठिन हूं। फिर भी, दोनों
, के सामान्य धन्तर के लिये कुछ वाह लिखी जा सकती हूं। जीवदव्य जीवन
, का भौतिक भाघार हू ; अतः वे वस्तुए जिनयें जीवद्च्प पाया जाता है सजीव वही
जाती हूं। निर्जीव वस्तुओं में इसका अमाव होता हूँ। अत, जोवदव्य को उपस्पिठि
या अनुपश्विति चेन या सजीव बोर बर्चेतन या निर्जीव हए-
पदार्ष का आवारमूत अन्तर हूं, ओर जीवद्व्प डरा को जानें वाठी
विभिनन जीवन क्रियाएं, जैसे इवसत, उपापचयन, पोदाहोर, दुद्धि, गति, प्रजनन
हो सजीव पदार्थों के संठक्षण हू। कुछ थर्यीं में निर्जीव पदाबे भी गति सौर
वृद्धि प्रदरधित करने हूँं। कुछ निर्जीव पदार्य, जेसे मशीनें भी सति करती हूं
जब कि बाह्मा बल (८५८8६ छिएए्ट) उन पर प्रेरण किया जाता है । किसी
दवव में अंतर्मूत बहुत ही कण सी बहुत तेजी मे कम्पत
(पक्ष) करते हुए दिखाई देने हू । इस कम्पन को ध्राउनीयप गति
कहने हूँ, वयोंकि इसको सबसे पहले रावटं ब्राउन
नामक वेश्ञानिक ने १८२८ में देखा था जब कि वे पराण को सुकषमदर्णी द्वारा
देख रहे थे। निर्जोव पदार्य, जैसे केलाम था मणिम और प्रवाल (८७१215)
भो चुद्धि वार सकते है, ठेडिन जैसा पहले बताया जा चुका हैं सजीव व निर्जीव
की वृद्धि को विधियों में अन्तर होता हैं। पुनरावुन उद्दीपन (८८०९८
(0) के कारण सच तत्रिकाय (पटटाशट5 ) और
(एंड5प८5) थक जाने हूं और कुछ समय के विधाम के वाद अपनों हक
दशा में थाठे हूं । निर्जीव वस्तु, जैसे घानुए भी अधिक समय तक में
लाने से थक जाती हूं, और जैसा फि स्वर्गीय सर जे० सी० बाग ने प्रयाग
हारा सिद्ध किया या कि ओपधियों द्वारा घानुए भी बिपऊत (]001९610 ०
जोर उद्दीपित की जा सकती हूँ। इस सजीव व निर्जीव में तो
गौर नियमित अन्तर नहीं बताया जा सकता |
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न
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