आशा की नयी किरणें | Asha Ki Nayi Kirnen

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Asha Ki Nayi Kirnen by डॉ. रामचरण महेन्द्र - Dr. Ramcharan Mahendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड्‌ ५ @ 7) क ५, श्रद्ध कर १ . | ९६ आशाकी नयी किरणे स्थापनाके व्यि युद्ध करती ओर अत्याचार, अन्याय, विलास ओर कामुकताका विनाश करती है | तात्पथं यह कि इन सब रूपोंके विधानमे शक्तिके नानां खूपौका मह जनताके हृदयतक पर्हुचाया - गया है | एक युग था जब भारतवासी सुशिक्षित थे ओर इन प्रतीको - का अथ समन्नते थे । खेद है कि अब इनका युप्त भेद विस्पृत हो गया है और केवछ बाह्य पूजाकी भावनामात्र शेष रह गयी है, फिर भी इससे शक्तिका महत्त्व स्पष्ट हो जाता है ! बलवान्‌ बनो ! झक्तिकी पूजा. करो । जब हम यह सलाद देते हैं, तो दमारा गुप्त मन्तब्य यह होता है कि दुर्बल मत बनो । कमजोर मत बनो । जिधस्से कमजोरी आती है, उधर ध्यान दो ओर निबेठताकों दूर भगाओ । अपने शरीर, मन, आत्मामें शक्ति भर ठो | संसारमें अनेक पाप हैं । आप गौको मार देते हैं, तो गोहत्या- का जघन्य पाप आपके सिरपर पड़ता है । किसी बच्चेको मार देते है, तो बाख्हव्याके अपराधी होते हैं । किसी ब्राह्मणका वघ कर डालते हैं, तो त्रह्महतत्याका पाप छगता है | इसी प्रकार हमरे शासोंमें अन्य भी अनेक पा्पोंका उेख है, किंतु एक बहुत बड़ा पाप दुवेख्ता है । शरीर; मन या आत्माका कमजोर होना मनुष्यका बहुत बड़ा पाप है | इसका कारण यह है कि दुर्बदताके साथ अन्य भी समस्त पाप एक-एक करके मनुष्यके चरित्रमें प्रविष्ठ हो जाते हैं । दुवेखता सत्र प्रकारके पापोकरी जननी है | यदि आप दुवेड हैं, रागैरसे क़ृशाकाप और मनमें साहसविद्दीन . हैं; तो अपने या अपने परिवार-पड़ोस इत्यादिपर किये गये अत्याचार- बन $




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