भारत में इस्लाम | Bharat Me Islam

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Bharat Me Islam by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ कुस्तुतुनिया इन धर्मान्व ज्ञगडो का के द्र ा, जहां अनेक पथ नीर दल चन गये थे 1 ये लोग परस्पर अत्यन्त घृणा भाव रखते थे। अरव उन दिनों स्वत त्रता की अपरिचित भूमि थी, जो भारत सागर से लेकर शाम देश के मरुस्यल तब फैसी हुई थो । यह भगोडो और झगडालू ईसा इयो का आश्रय- स्थल हो रहा था । मरव के मधरथल ईसाई सन्यासियों से भर गये थे और वहा के वहुतेरे लोगों ने उनके पथ को स्वीकार कर लिया था । हवश देश के ईसाई रते, जो नेस्ट्र धम को मानते थे, अरव के दक्षिणो प्रान्तं यमन प्र खधिकार रखते ये अरव एशिया के दक्षिण पश्चिम कोण पर एक मर्स्थल है ! इसकी लम्बाई १,४०० मील मोर चौडाई ७०० मील है । जन-सप्या ५० लाख के लगभग है। देश भर में पहाड, पहाड़ी, ऊजड जगल भौर रेत वै टीलेरै1 जल का भारी अभाव है। खजूर हौ इसदेशको न्यामत है । सधिकाश भरव. वासी, जिह खानावदोश कते है, किसो पहाडी चनि के पास ठहर जाते है आओौर जव चारापानी का सहारा नही रहता तो मन्यत्र चल देते हैँ । इस देश मे गर्मी इतनी पडती है कि दापहर के समय हिरन भन्धाहो जाता है। आधिया ऐसी भाती है कि वालू वे टीले के टीले इघर से उघर उड जाते हैं। यदि यात्रियों का कोई समूह इनके चपेट में आगया तो उसकी ख़र नह्दी 1 कही कही सर्दी भी चडे कड़ाके की पड़ती है । सर्दी मे वर्षा भी होती है । यही वर्था का जल नालो भोर गद्ढो मे सचित वरके पिया जाता है । अरवके घोडे समार मे प्रयात हैं । यह पशु पयरीले स्थान पर बडा काम आता है, पर रेतीले भागों के काम बी चीज़ तो ऊँठ है । यह न वेवल सवारी के वाम आता है, प्रत्यु्तु इसका मास आर दुध भी वहुतायत से बाम मे लाया जाता हैं। लाग सजूर का गुदा स्वय खाते और गुठली कंटो वो खिलाते हैं । अव उनकी दशा मे बुछ परिवर्तन हो गया है ! बसरा नगर के नेस्टर मठ के महू त वहीरा ने मुहम्मद वो नेस्टर मत के सिद्धात सिखाये । इस विद्वान्‌ स यासी के सदुपदेश से मुहम्मद के मन में मू्ि पूजा से बहुत घुणा हो गई 1 जव मुहम्मद मक्का लौटा, तो वह उ हो ईसाई सयासियों की भाति जड्ूल में बुदी बनाकर रहने दो हीरा नामक पहाडी की एक गुफा मे, जो




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