जय सन्मति | Jai Sanmati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६)
कमं 'बड़े रावण से बैरी, बंधक बनकर बेठे ।
रूठ गये बे ऐसे जैसे, रूठ गये हों जैठे ॥
कर्म यहाँ दुनियां के रावण, राम भ्राता हितकर |
भ्रपना राम जगाता जो वहु, कमं काटता दुखकर ।।
इसी सर्ग में भगवान महावीर की कैबल ज्ञान की प्राप्ति श्रौर
उनकी स्तुति का श्लाध्य वर्णन है।
भ्राठ्वें सगं मे श्रमण संस्कृति के प्रतीकं भगवान महावीर का
विपुलाचल पवैतं पर श्राना, सम्राट् बिम्बसार का आना, भगवान
का उपदेश होना इत्यादि का वर्णन है। भगवान महावीर के उपदेश
में निम्न पंक्तियां विशेष महत्वपूर्ण है--
हो समाज की नीव अहिंसा जगहित कारी,
बने विष्व ` सुखधाम मित्रता की हो क्यारी ।
सभी तरह के युद्ध भौतिकी संहारक हैं,
विव शांति मं हिसा केही रब बाधक हं ।,
तब कल्याण करी भौतिक उन्नति होती है,
जब सरिता भ्रष्याह्प्य हृदय का मल धोती है।
उसकी लय ध्वनि व्याष रही है सारे णग में,
सून करपाश्रो परम सौख्य निष्क्टक भग मं ॥1
में इस काव्य के निर्माता | को उनकी सुन्दर रचना के
लिए बधाई देता हूँ भ्राशा है कि हिन्दी काव्य के प्रेमो इसे
समुचित सन्मान :देके।
-मिश्रीलाल गंगवाल
पयूं बण पथं वित्तम॑त्री। मध्यप्रदेश
१०७६ *४६ ` भोषालं
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