रक्त के बीज | Rakt Ke Biij

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Rakt Ke Biij by मम्मधनाथ गुप्त - Mammadhanath Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उससे कहें कि बम ले जावे | वे मन ही मन गालियों का एक लम्बा-सा वाक्य भी तेयार करते जाते ये, पर जब रात ॐ दस बज गये, धर क सव लोग खा-पी चुके, वे खुद भी डराईग रूम में ताला डाल कर घर के अन्द्र से खा भाये | पर लड़का नहीं आया । उन्होंने सोचा कि श्रव खुद ही कुछ करना चाहिए । ऐसा तो नहीं हो सकता था कि उनकी तरह एक प्रसिद्ध राजभक्त के मकान पर रात भर बम रखा रहे | नहीं, कभी वे ऐसा होने नहीं दे सकते । वे सोचने लगे कि अब क्या द्वो ? इच्छा हुई कि जाकर खी से कुछ सलाह पूछे, पर उन्हें स्त्रियों पर विश्वास नहीं था । न मारूम किससे कहती फिरे कि घर में एक बम झाया था, और उसे क्‍यों फक दिया और त्यों फेंक दिया श्रोर यदि बात घूमते-घूमते मिस्टर मौरगन के कानों में पहुँचे, तो ऊँचे-ऊँचे अफसरों में उठना बेठना भी मारा जाय । उन्होने बाकी दो लदकों के विषय मे सोचा तो रेसा मादस पड़ा कि इन लोगों से कने से कुछ फायदा नहीं होगा । ये लोग श्रपनी बीवियों से कंगे, भौर वही बात होगी जिसे बचाना है । रायसाहब के घर मेँ कटै नौकर थे, जिनमे से एक बहुत पुराना था, श्रोर किसी जमाने में उनके बहुत से गुप्त काम क्रिया करता था । उन्होंने उसको चुलाया । इतनी रात गये मालिक ने उसे क्‍यों याद क्रिया इससे उसे बड़ा ताज्जुब दुश्रा । वह आक्र प्रशनसु चङ्‌ दृष्टि से ताकते हुए मालिक कै सामने खड़ा हो गया । मालिक उसे बहुत ध्यान से देख रहे थे। नौकर ने पूछा, 'हुजूर क्‍या हुकुम हे ?' रायसाहब को एकाएक कुछ नहीं सुरा, कम से कम उन्दं यह हिम्मत न हुईं कि बम के सम्बन्ध में कुछ कदें, पर कुछ कद्दना तो था ही, इसलिए बोले, 'श्राजकल मुदद्ले में बहुत चोरी हो रही हे । समक्षे बहुत होशियार रहा करो । . ... नोकर ने मालिक को खुश करने के किए का, (हुजूर तमी भाज पुलिसवाले भाये श्रे ?! र के बाज




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