महादेवी वर्मा | Mhadevi Varma
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपने दृष्टिकोण से १३
आधार पर यथार्थ का सच्चा निरूपण करते हैं।
थामा,” 'दीपशिखा' और आधुनिक कवि! की भूसिकाएं कवयित्नी के
. अंतर्संथन और प्रमुख संकल्पों की विचारात्मक प्रतिक्रिया है, जिसमें अपने
पक्त-समर्थन का शआआग्रह अ्रधिक, वस्तुस्थिति की निर्दिष्ट दिशाओं का संश्लेषण
कम है। कहीं-कहीं दाशनिक-चिंतन की बोझिलता से उनकी भाव-ब्यंजना
सहज हर्विज्ञेय हो गई दे ।
जीवन ओर कृतिच्त्य में वेषम्य
महादेवी जो के मेंने कभी दर्शन नहीं किए, किन्तु सुना है वे हँसत्ती
बहुत हैं और कभी-कभी विपरीत स्थिति में भी बहुत हँसती हैं । जीवन के प्रति
टर् जिक! दृष्टिकोश रखनेवाली कवयित्री का यह रूप बहुतों को श्राश्चय में
डाल देता है ।
मानव-मन का सीमान्त क्या है--यह तो बताना कठिन है, किन्तु
किसी भी शारीरिक अथवा सानसिक असम्ब्रद्धता, असंगति या লিজ
से सजग चेतन का श्रचेतन से सयोग होने के कारण मनुष्य का पराजित मन
वाद्य-संघर्षो से उतरकर एक कट्पनिक, सटी मस्ती अथवा मन बहलाने वाली
मादकता का प्रश्रय. लेता है श्रौर अपनी फक्तडपन से भरी अनुभूतियों की
आवेगपूर्ण अभिव्यंजना करने लगता है। यह एक प्रकार का लक्ष्य-हीन लक्ष्य
है, जो उसे काल्पनिक-सुख देता है। अनेक बार बाहरी असफलताएँ
. और भीतरी विचशत्ता भावुक व्यक्तियों को प्रमाद्म्रस्त बना देती हैं, उसकी
वेदना मे जेसे करुण श्रावेग की प्रचुरता होती है, उसी प्रकार उसकी विपरीत
प्रतिक्रिया हर्ष भी विचिन्न ओर अआवेगपूर्ण होता है। महादेवी जी की हँसी
निराशा, पत्लायन, आवेग, अतृप्ति, असंतोष ओर भीतरी विवशता का परिणास
है, जिसे अनंत संघर्षो से परे युक्ताव्रस्था कदा जा सकतादहै। यदि हम
उनकी हँसी का विश्लेपण कर तो उसके अतल मे उतनी रसात्मक अनुभूति
नहीं जितनी असम्बद्धता, असंगत्ति ओर उथल्ञापन पाएगे। उनके रुदन की
भाँति उनका हास्य भी संक्रामक है । असम्बद्ध बातों और विपरीत स्थिति में
हँसना इसी संक्रमण से प्रेरित होता है ।
जब चेतन-अचेतन स्थिति में हृदयस्थ भाव, विचार एवं आलम्बन एक
दो जाते हैं तब हम किसी विशेष बात पर नहीं हँसते, न किसी चस्तु को
हास्यास्पद जानकर हँसते हैं, वरन् यों ही अपने आप हँसते हैं; तब हँसी
भीतर से नहीं, ब्राहर से आती है। महादेवी जी अपनी हँसी को स्वकीय
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