साहित्य का सपूत | Sahitya Ka Sapoot
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ पहला अद्ध
संसारी--बेशक | क्योंकि मैं हिन्दुस्तानी आदसी हूँ।
हिन्दी को अपनी साद्-भाषा जानता हूँ। इसलिए जो
बोली या शब्द मै जन्म से बोलता आता हैँ, उसी को
हिन्दी सममभता हैं ।
साहित्यानन्द--आहाहाहा ! आहाहाहा ! उुम्हारी
समम साहित्यिक नहीं है।-कारण ? तुम साहित्य को नहीं
जानते, इसीलिए ऐसा कहते हो।
संसारी--( हाथ जोढ़ कर 9) तो कृपा कर मुझे भी
साहित्य से जान-पहचान करा दीजिए, ताकि मेरी भी
सम आपकी सी हो जाय । काहे को इतनी सी बात की
कमी के लिए मँ सदा नासम बना रू !
; साहित्यानन्द--अच्छी बात है । परन्तु इसमे तुम्हारा
बड़ा समय लगेगा]
संसारी--कुछ भी नदीं ! मैं तो अभी चलने को तैयार
हँ। चलिए मुझे ले चलिए |
साहित्यानन्दू--कहा ?
संसारी--अपने साहित्य जी के पास, उनसे जान-
पहचान कराने । अब तो बिना उनसे मिले मुभसे रहा न
जायगा } ( दाथ जोड़ कर वस अब ले चलिए। देर न
कीजिए ।
साहित्यानन्द--( घबरा कर ) अरे ! तो साहित्य कोई
अनुष्य थोड़े ही है, जो तुम्दे ले जाकर उससे भेट कराऊँ ९
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