कुरल - काव्य | Kural Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
349
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गोविन्द राय जैन - Govind Ray Jain
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श्री एलाचार्य - Sri Elacharya
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १६ ]
अहिसा और पाप का नामकरण “पोरम” अथोत् हिसा से करती थी।
नलदियार सस्क्ृत भाषा मे न होकर जनता की भाषा में है, इसलिए
कुछ लोग इसको 'बेल्लार वेदम? भी कहते है। जिसका अथ है किसानो
का बेद् ।
वर्तमान साहित्य का जब जन्म ही नहीं हुआ था तब जनों ने
कई सहस्र वधं पहिते समीचोन अथोत् सही ज्ञान देने वाले साबवे-
जनिक साहित्य को ससार के सामने उपस्थित किया था और यह
साहित्य तामिल भाषा में है, जिसका हम यहो दिग्दर्शन कराते है।
तामिल भाषा में अन्य महत्वपूर्ण जेन ग्रन्थ
१, टोलकाप्पियम्ू--यह तामिल भाषा का अति प्राचीन
विस्तृत और व्यवस्थित व्याकरण है। भारतके प्रसिद्धआठ वेयाकरणों
में जिसका प्रथम नाम आता है उस इन्द्र के व्याकरण के आधार पर
यह तामिल भाषा का व्याकरण लिखा गया है। खेद है कि यह इन्द्र
का व्याकरण अब ससार से लुप्त हो गया है 1 टोलकाप्पियस के
उदाहरणों से तामित्न देश की सभ्यता और समृद्धि का बोध होता है ।
अतिमायोग' जीवो # इन्द्रीविभाग आदि, जेन-विज्ञान के उदाहरण देने
से ज्ञात होता है कि इसका रचयिता जेन विज्ञान से पृशंपरिचित था]
२, धिरष्पदि कृरम--इस महा काव्य की चचो हम ऊपर
कर आये है।
३, जीवक चिन्तामणि--तामिल भाषा के पांच महाकाव्यों
में इसे अत्यन्त महत्वपूर्ण गौरब प्राप्त है। इसकी इतनी अधिक सुन्दर
रचना है कि इसके एक प्रमी ने यहा तक लिखा था कि यदि कोई
चढ़ाई करके तामिल देश की सारी समृद्धि ले जाना चाहे तो भत्ते ही
ले जाए, पर 'जीवक चिन्तामशि' को छोड दे ।
४, अरनेरिच्चारघ्ू-- सघमंमार्गसारः के स्पयिता तिरुमु -
नेप्पादियार नामक जैन विद्वान् हैं। यह अन्तिम सगमकाल में हुए
थे। इस महान ग्रन्थ मे जेनधमं से सम्बन्धित पोच सदाचारों का
बशुन है ।
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