दरिया साहब (मारवाड़) की बानी | Dariya Sahab (Marvad) Ki Bani

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Dariya Sahab (Marvad) Ki Bani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शाद परे का डी सूर बीर सनमुख सदा, जीवन मरन थित मेटकर, कायागढ़ ऊपर चढ़ा, ब्रह्म राज निरमय भया, एक राम का दास । किया ब्र्य में बास ॥३७॥ परसा पद निबोन । अुनदद चुरा नि्सांन ॥३८॥। जलन नाद परचे का अंग दरिया सुभिरे राम को, रसना में रस ऊपजे, रसना सेती ऊतरा, दरिया बरपा प्रेम की, दरिया हिरदे राम से, लहरें उ्ें प्रेम की, जन दरिया हिरदा भ्रिचे, सैद भरा जहें प्रेम का, हरे सेती... ऊतरे, नाभि कँवल में संतरे, नाभि कंबल के भीतरे, रूप न रेख न बरन है, नामी परचा ऊपजे, किरनें छूटें प्रेम की, नाभि कंवल से ऊतरा, खिड़की खोली नाद की, दरिया चढ़िया गगन को, सुख उपज़ा साई पिला, बंकनाल की सुध गे, दरिया चढ्या गगन को, (१) रास्ता, तराइ | (२) लॉच गया | आठ पहर थाराध । पिसरी के से स्वाद ॥१॥ हिरे कीया. बास । पट ऋतु बारह मास ॥२॥ जो कभु लागे मन । ज्यों सावन बरषा घन ॥हे॥ हुआ ज्ञान परकास । पहें लेत हिंलोरा दाप्त ॥४॥ सुख प्रेम की लहर । सहज सरीजे डहर' ॥४॥ भर करत गुंजार । ऐसा झगम बिचार ॥६॥ मिट जाय सभी बिबाद । देखे गम झगाघ ॥७॥। मेरे ढंड तल झाय। पिला त्रह्म से जाय ॥८॥ मेरे - उलंध्या ढंड । भेंटा ब्र् अखंड ॥६॥ मेरे डंड की बाद । लॉष्यां औघद घाठ ॥१०॥




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