गिरीश रामायण | Girish Ramayan

Girish Ramayan by गिरीश - Girish

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिरीश रामायण ७ अध्याय १ इस प्रकार सब देवता, कर निश्चय यह बात । भारत भुमि में गए, बन वानर की जात ॥१६॥ जा देखी भारत मा की ददा दुखानी, तब संबर की झ्राखों मे भर श्राया पानी । : ना जप तप देखा सुनी न श्रुति की वाणी, श्रधिकाश धर्म पथ से च्युत्त देखे प्राणी ॥। ना दान पुण्य स्वाध्याय हि दिया दिखाई, सेवा पूजा ब्रत यज्ञ श्र शुचिताई । देखे दुखिया गौ ब्राह्मण पीडित पंडित, देखे मंदिर विद्यालय श्राश्रम खडित ॥ उधर एक दिन अवधपति, श्री दशरथ महाराज । गुरु वदिष्ठ के घर गए, पुत्र प्राप्ति के काज ॥१७। ' देखा वकिष्ठजी ने श्री नूप को आ्राया, तप कर अणाम चरणों में शीश छुकाया । दे शुभाशीण युख्वर ने गले लगाया, फिर देकर श्रासन आदर सद्ति विठाया ॥ यूछा महनऋषि ने कुशल क्षेम बृत सारा, तव विनय विश्ुपित चुप ने वचन उचारा । गुरु चरण कृपा से सभी वात का सुख है, पर पुत्र नदी है इसी वात का दुख है ॥। सुन दशरथ के ये वचन, ऋषि वश्चिष्ठ घर ध्यान । बोले होगे शीघ्र ही, चार पुत्र गुणवान ॥१८॥| जिनके यश का कंडा जग में फटरेगा, जब तक धरती होगी लव तक लहरेगा। गी ऋषि को श्रामत्रण दे बुलवाओ, उनसे शुभ दिन पुत्नेण्ठि यज्ञ करवाओओ ॥। ले गुरु आज्ञा दशरथ श्रपने घर झ्राए, आआदिक मुनि पड़ित सभी बुलाएं । रचना करवाई हवन यज्ञ शाला की, आ्राहुति देन लगे मुनि जप माला की ॥




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