श्री अकलंक - नाटक | Shree Akalank - Natak

Shree Akalank - Natak by सिद्धसेन जैन गोयलीय - Siddhsen Jain Goyliya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुभ । (मंत्री का प्रस्थान ) शो ( माता-सकलंक ) का गाना |. ( सोहना ) शुभ कौनसा वह दिवस होगा! लाल मरे नहार्यगे। मलकर उवटना बैठ पटड़ा हाय महंदी रचायंगे | उन हाथ में कंगना पंधे शीश से से सजे । हो मौड़ क्या हों मुकूट सिर पर हों वराती सनंप्ने |! चह पालकी घोड़े रथों से दाधियों के शोर से । भर रंग विरंगे वाजे होपें बोलते घनघोर से ॥। प्रिय लाख मेरे नव चढ़ेंगे समधजी गज पीठ पर | शुभ गीत गावें. छिन्नरी सी आरतें तुक भोड़ कर॥! र्वसुरे के अपने जांयगे अपनी चधू को लायंगे । झावेंगी रथ में वेट जब, तव खुशी बहुत मनायेंगे॥ रायी-( मनमें ) में भी चेठक में चलती हूं और पंटितनी की भट' थाल में रख कर ले चलती हूँ क्योंकि शाण नाथ |, पपनी ही बेठक, में पंदित नौ को.»




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