ब्रह्मा - योग - विद्या | Brahma - Yog - Vidya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शेर सिख पर यागिराज श्री गोताई दी 4 स्वार्मादयालजी महाराज हु नही कस संचिस परिचय । .... दी के सनक नल तिथि भो वास्थावस्थासे हो साधु-महात्माओं के दर्शनों कौ उल्कट अमिलाषा बनी रहती थी। . १२ वें नजर को अवस्था में, मैंने एक रात्रि को यह स्प्न. देखा कि; में रेल पर सवार दो, हसन-अब्दाल ( जिला रावल- पिरडी ) चला जा रहा हक । स्टेशन पर पहुँच कर मैंने बढ़े चौढ़े प्लेटफार्म देखें। मैं एक छोटे नगर का निवासी हूँ। बचहां पर उस. समय रेल आगई थौ; परन्तु मैंने बढ़ी लाइन के स्टेशन नदीं देखे थे । जो सुभे मिलता, उसो से मैं खामी- दयालजोका पता प्ूछता। एकने मुभको उनका -आशम : और रदनेका मकान बतला दिया | मैं, उनके पास- गया । वे सुकसे बढ़े प्रेससे मिले । मेरे साथ बाहर घूमने चले गये ।




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