राणा प्रतापसिंह | Ranapratap Singh

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Ranapratap Singh by बाबू रामचन्द्र वर्मा - Babu Ramchandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्दे देखेंगे चाहे तेज प्रकाश हो और चाहे भौंधी हो सभो अवस्थाओंमें उसी प्रछृतिकी आशाजुरूप परिवर्तित नई नई विचित्रतायें ही देखेंगे । भर्थात क्षीण प्रकाश और मन्द चायुमें जो प्रकृति दिखलाई देतो थी तीव्र प्रकाश और वा- युमें भी उसीका एक रूपान्तर दिखालाई देगा और कुछ नददीं । आंधीके समय यद्यपि लद्वरोंकी लीला वढ़ जायगी परन्तु मन्दवायुमें भी उस लीलाको पूरा विराम नहीं मिलेगा यद्द निश्चय हैं। उस फेनिल समुद्रके मादात्म्यके चारों ओर सूर्योदय और सूर्यास्त आकाशका वादलोंसे घिरना और सुक्त हो जाना कि- नारेकी भूमिका प्रकाश और अन्घकार पवन-प्रवाइकी धीरता और प्रबलता ये सब दृद्य घूम फिरकर भाते जाते रहते हैं। छोटे छोटे और चश्नल दृद्योंका नया- पन समुद्रके रुपरददीसे और भी अधिक नया गोरव प्राप्त करता है और सौन्द- येके घात-प्रतिघातमें समुद्रका स्फुट माददात्म्य और भी अधिक प्रस्फुटित दोता रहता है । इस विपयमें जर्मन कवि शीलरका विलियम टेल नामक नाटक वहुत ही उपयोगी रृष्टान्त है । यह तो हम नहीं जानते कि किप्त महासाधनाके क्षेत्रमें उसकी गुणावलीका हुआ है किन्तु प्रथमसे छेकर अन्ततक उस गुणावली का अभिनय देखते हैं । समालोचकने ठीक ही कहा है कि यह गुणावली मानों स्वतः ही विकतित थी-- 6 9ढॉए 0 हु 0८०85015 ६0 प८४९100 घाडएए। रेखके चारों ओरके चरित्र उसीके स्पर्दसे विकसित हुए हैं और उन छोटे छोटे चरि- त्रॉंकी विचित्रतामेंसे होकर दम टेलकी एक ही महिमाको विविधभावसे देखते हैं। टेलके चरिन्रकी समालोचनामें जो कुछ कहा है वह दुर्गादास के सम्ब्- न्ध्में भी अच्छी तरह फवता 06६0 166८पिंए€ घिफ्ाडतिएड् लि घटपिंप्राषि पद 00फात 1 95५ पट 0 फापतेड06 8. 0९81६ 0 ६ पद 0 9085घं08 0 0 ६ दिधाड अर्थात्‌ वह गंभीर चिस्ताशील उत्साही कर्मपिपासु सद्दिविचनाकी नियमित सीमामें वद्ध उपकाराभिलापी दानी और दंभ तथा भयसे सर्वधा अपरिचित है । हम नूरजहाँ नाटककी एक स्वतंत्र समाठोचनार लिख चुके हैं फिर भी यहाँ कै यदद समालोचना हमारी सीरीजके नूरजहों नाटककी भुमिकामें प्रकादित हो चुकी है ।




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