घुमक्कड़ - शास्त्र | Ghumakkar Shastra

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Ghumakkar Shastra by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankratyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रथातों घुमकइ-जिशासा ७ किपक से पंकज बनकर आदिकाल से चले झ्राते मद्दान्‌ घुमक्कड़ घर की फिर से प्रतिष्ठापना की जिसके फलस्वरूप प्रथम श्रेणी के तो नहीं किंतु द्वितीय श्रेणी के बहुत-से घुमक्कड़ उनमें भी पैदा हुए । ये बेचारे बाकू की बढ़ी ज्वालामाई तक केसे जाते उनके लिए तो मानसरोवर तक पहुँचना भी मुश्किल था । अपने हाथ से खाना बनाना मांस-झंडे से छू जाने पर भी घर्म का चला जाना द्ाइ-तोड़ सर्दी के कारण हर लघुशंका के बाद बर्फीलि पानी से हाथ धोना और हर महाशंका के बाद रनान करना तो यमराज को निमन्त्रण देना होता इसीलिए बेचारे फू क फू ककर ही घुमक्कड़ी कर सकते थे । इसमें किसे ड़ हो सकता हैं कि शेव हो या वैष्णव वेदान्ती हो या सदान्ती सभी को आगे बढ़ाया केवल घुमक्कड़-घम ने । महान घुमक्कड़-ध्म बोद्ध धर्म का भारत से लुप्त दोना क्या था तब से कूप-मंडूकता का हमारे देश में बोलबाला हो गया । सात शताब्दियाँ बीत गईं और इन सातों शताब्दियों में दासता आर परतन्त्रता दमारे देश में पर तोढ़कर बेठ गई यह कोई आकस्मिक बात नहीं थी । लेकिन समाज के अयुश्रों ने चाहे किंतना ही कूप-मंडूक बनाना चाहा लेकिन इस देश में माई-के-लाल जत्न-तब पैदा होते रहे जिन्होंने कर्म- पथ की श्रोर संकेत किया । हमारे इतिहास में गुरु नानक का समय दूर का नहीं है लेकिन झपने समय के वह मददान्‌ घुमक्कद़ थे । उन्द्दोंने भारत- झमण को दी पर्याप्त नहीं समझा और इंरान और अरब तक का घावा मारा । घुमक्कड़ी किसी बढ़े योग से कम सिद्धिदायिनों नहीं है और निर्भीक तो वह एक नम्बर का बना देती दे । घुमक्कढ़ नानक सक्के में जाके काबा की झोर पैर फेलाकर सो गए सुद्ों में इतनी सहिष्णुता होती तो आदमी होते । उन्होंने एवराज किया और पैर पकड़के दूसरी ओर करना चाहा। उनको यह देखकर बढ़ा झ्रचरज हुआ कि जिस तरफ घुमक्कड़ नानक का पर घूम रहा है काबा भी उसी श्रोर चला जा रहा दै । यह है चमत्कार झाज के सवशक्तिमान किंतु कोठरी




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