अध्यात्म अनुभव योग प्रकाश | Adhyatma Anubhava Yoga Prakash

Adhyatma Anubhava Yoga Prakash by श्री चिदानन्द जी - Shri Chidanand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीवीतरागाय नम: , सी १८टिटककिडि/5क अध्यात्म अनुभव याग श्रकाश ्ि जज कुवयठचठ आदिवाथ नमुं आदि में, घधेमान नसुं अन्त । घावीसों श्री मध्य जिन, शान्ति करो भगवन्त ॥ १ ॥ पुण्डरीक श्री आदि गण, गौतम अन्त प्रधान | खुधम स्वामी पाट्घर, नित २ कर प्रणाम ॥ २ ॥ श्रीगुरु चरण मनाय कर, श्रुतदेवी मन आु । करो छृपा सुभ दीन पर, ज्ञान उदय होय भाजु ॥ ३ ॥ सब योगिन को स्मरणकर, करूं योग प्रकाश | मन्द मति मम दीन की, पूरण करियो आश ॥ ४ ॥ पश्च परमेष्टि स्मरण कर, करो आत्म अभ्यास । खिंदानन्दूचर्णन करे, जैन धर्म का दास ॥ ५॥ समस्त आात्मार्थि सरल-स्वभाच भव्य व्यक्तियों से मेरा कहना है ' कि इस झुशों से पूर्ण, कघाय घृत्तियों से चूणे, घनघोर दुःखागार अपार संसार में भले हिन्दु दो या मुसब्माल हो, भन्तरीय मेंद से आये हो या अनार्य हो, जैन हो अथवा वैष्णव हो, कौनसे ऐसे प्राणी हैं, जो नाना प्रकार के रोग-शोकादि छशों से घ्सित नहीं हैं? यह भी.देखने में आता है कि उनकी आत्म-घातिनी व्याधियों के प्रतिकार के लिये आयुर्वेदिक कठा- कुशल वैद्य, हिंकमत मैं निपुण हकीम, डाकूर, तान्तिक, मान्तिक, प्रदृत्त हो रहे हैं। परन्तु जरा विचार से देखा जाय तो पहले व्याधि क्या है ?




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