अष्टाग योग प्रकाश | Ashatagam Yoga Prakash

Ashatagam Yoga Prakash by आचार्य भगवानदेव शर्मा - Acharya Bhagwandev Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रिय हो । वह कच्ादि दिछा, चैठसर प्राणायाम और धत्याद्र का संयम करे । जिस सिधि से सुखपूर्वेक बैठकर घाणायामादि क्रिया की जा सके, फाई नस दवमे न पात्र और चित्त झे अनस्थिरता न हों उसी स्थिरता से चैठना चाहिये । बैठने की सर्वोत्तम विधि यद्द है कि दाहिने पग को पएझे याम ओर की कटिमें लग जाजें ओर पंजा कटि से याश्र रहे । वाम पग का पंज्ञा दाहिने पग की गाँठ के नीय हों झर अगुलियाँ वार निकली हों । दोनों हाथों का दथेली ऊपर के और उमका पृ्रभाय व्यपनी सार को गाँठों पर हो । दाहिने हाँथ की तजेती के ऊपर का भांग अपने अंगूठे के मध्यभाग में मिला हो | घाम हाथ को तर्जनी का ऊपर का भाग अपने अंगूठे के ऊपर के भाग में मिला हो 1 झोप दोनों हाथों की अंगूलियाँ परस्पर मिकी, सीधी भीर किच्बित्‌ नीचे की सार इडुकी हो । सब अड़ कड़े आऔीर सीधे दों 1 आँखें वन्द हो । ““ तने इंद्धा नशि धघाता । प्रयत्न दैथिर्या नन्त समापत्त्तिभ्यास्‌ू । या. द. 17” इस घ्रकार बैठकर पाणायाम और प्रत्यादार करने से चारीर के सब भड्ड, मत्यह् ओर नस-नाइ़ियाँ स्थिर श्हतों हैं । आालर्स्य नहीं आता और विन दान्त रहते छू। जब योगी का मन उपासन से पूर्णेरूप से लय जाता छे तब आसन की सिखि रवतः दो जाती है । नजर




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