स्वामी रामतीर्थजी के लेख व उपदेश | Shri Swami Ramthirthaji Ke Lekh Va Updesh

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Shri Swami Ramthirthaji Ke Lekh Va Updesh  by श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भिल्द तीसरी जीषन-चरिस ৮ हुम पेसखवे दो सब तुम्हीं दो | कोई शक्ति इसे रोक नदीं सकती। कोई राज) प्रेठ या देव इसके सामने ठहर नहीं सकता। सत्य फी आज्ञा अटल है। क्तोणचित्त मत हो। मेरा शिर तुम्दारा शिर है, इच्छा दो तो फाट लो, किन्तु इसके स्थान पर অহা ओर भिक्त भागे 1 पे पूं प्रेम ये! चति छोटे पदगरा्ञे से मो उनका ल्यवदार चत्यन्तं कोमल होवा था । चे श्रपनी पुस्तर्को, क्रज्मो, पंसिल्तो, दुरसयों कौर आरियों तक फो जीवधारियों टो मति सम्थोपन करते थ, झोर अनेक धार मैने उनको उन्हें चुमकारते, पुचकारते तथा घड़े स्नेह से घातचीत करते देखा है। उनके शब्द और घिचार प्रत्येक घम्तु को ऊँचा यना वेते थे । उनके लिये फोई ऊँचा- नीचा, जानदार या वेजात नहीं था। प्रत्येक्त पस्तु उनके लिये अपने घाएठ रूप से फुथ अधिक थो। अर्थात्‌ परमेश्वर थो। खिस फिसी से उनकी भेंट होती थी; उसते ये “एफता” की द्वद॒य भौर अन्तकरण से चेष्टा कस्ते ये, चोर उससे अपने आपकी मष णे अ्भिन्नता फा अनुभव करते थे। और इस प्रकार पदणे हृव्य फो षदीिमूत फरफे फिर अप्रत्यक्ष संफेतों লী অং के लाम में थे उसकी पर प्रमाय दल देते ये1 नेत्र चन्द्‌ फर, गहरी ओर सशाई के गम्मोर स्थरों से, थे उद्रू और क्रारसी फे अपने फतिपय प्रिय पथो ष्ठा जप पाड फरते थे, तवं उने गुलापी मालो पर भानन्दा पने शगते थे } एन पयो का ऐसा प्रमाय छन पर दोत्ताया फिप्रस्येक उपस्थित व्यक्ति फो प्रस्यक् द्यो खाता था फि राम उनमें बिलकुल द्य ग्ये ई । घंटों उनको यद दर रहती थो | जनसभा में स्याप्यान देते समय ये अपने पदिद्न मंग्न <« ७ को दोहराते हुए ध्यपनी दशा को इहना भू साते थे फि उनके अमेरिकन प्रेमियों ने फद्टा कि शरीर फेन्द्र में थे यहुत दो फम रहते थे, अर्थात्‌ देद्ाष्पास उनका बहुत




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