मानव-एकता का आदर्श युद्ध और आत्म- निर्णय | Manav Ektaka Aadrsh Youdh Aur Atma Nirnaya

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Manav Ektaka Aadrsh Youdh Aur Atma Nirnaya by लीलावती इन्द्रसेन - Lilavati Indrasen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय एकताकी ओर शझुकाव : इसकी आवश्यकता और कठिनाइयां जीवनके ऊपरी तलू-सतहोको समझना सुगस है, उत्तके नियम, उनकी विशिष्ट गति-विधियाँ, उनके क्रियात्मक उपयोग, ये অল हमे सहज लूभ्य है और हम इन्हे अधिकृत कर सकते हैँ, साथ ही काफी सरलता और शीतघ्रतासे हम इनसे लाभ भी उठा सकते है। पर ये हमे बहुत दृरतक नही ले जाते। प्रति- दिनके सक्रिय उपरि तलीय जीवनके चियें ये काफी है, पर जीवनकी गुरु समस्याएँ ये नहीं सुलझा सकते। वास्तवमे वात यह है कि जीवनकी गहराइयो, उसके गुप्त रहस्यो तथा उसके महान्‌, गूढ़ और सर्वनिर्धारक नियमोंका ज्ञान प्राप्त करना हमारे लिये अत्यत कठिन है। हमे अभीतक कोई ऐसा यत्न नहीं मिला है जो इस गहराइयोको नाप सके। ये गहराइयाँ हमे अस्पष्ट और अनिश्चित प्रवाह तथा गहन अंधकारके रूपमे दिखायी देती है, जिनसे मन ऊपरी तलकी अति सरल ज्योतियों तथा दौड-धृपकी ओर उत्सुकतासे लौट आता है। यदि हमें जीवनको समझना है तो हमें इन गहराइयो तथा इनकी अदृश्य शक्तियोको समझना ही होगा। ऊपरी तलपर तो हमे केवल प्रकृतिके गौण नियम और क्रियात्मक उपनियम ही मिलते हैं जो हमे तात्कालिक कठिनाइयोको पार करने और, विना समझे, व्यावहारिक अनुभवके आधारपर उसके सतत परिवर्तनोको व्यवस्थित करनेमे सहायक होते हं । मनृष्यजातिके लिये उसके अपने सामाजिक और सामूहिक जीवनकी अपेक्षा और कोई वस्तु अधिक अस्पष्ट या कम समञ्नमे अनेवाटी नही दहै, चाहे यह्‌ अस्पष्टता उस शक्तिके वारेमे हौ जो उसे चलती हैया उस्र उद्देश्के बारेमे जिसकी ओर वह वड रही है। इसमे समाजणास्त्र हमे कुछ सहायता नही पहुँचाता, क्योकि यह केवल अतीतका तथा उन वाह्य अवस्थाओका सामान्य विवरण देता है जिनके कारण जातिर्यां अपना अस्तित्व रख पायी ह । इस सवंधमे इतिहास भी हमे कुछ नदी सिखाता; यह घटनाओ और व्यक्तियोंका मिश्रित प्रवाह ठै, या फिर परिवतंनशील




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