कल्याण | Kalyan

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Kalyan  by श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संध्या २ ] नार्-वषण्युपुराणका मद्त्ता ८१३ लनगलतयवरनवसवातपाालपाटवललटलतवदाार्रववतवललपसवरवदददपलललटपवपपलपरटवपटएएलललएटटलवपपिडटटफटरफलपलइनिडसजटनफएनससलएपलएफसटटपलपाटपपपटशप पटना, कलकनपरच कॉस्‍जलनीकजदप्करिक नीच जी लीक की 2 कप निलचरकरा कान ननक ली नानी ना नानाभाल-ानाना नाना गनानानाना नाना नवानालटानानीनानानना ननणानान नीनानाना नानानानाानानानानानानानानाननालानानााानालानानाना सू द्विजत्तमगम ! पुर्पोकों अपने धर्मानुदृत्ट म्राम किये हुए घन ही सर्वदा लुगवदों दान और विधियूबेक यूज करना चादिये । इस ट्रब्यकें उमर्जन तथा रभगम मदन झंडा दोता हैं भीर उसको अतुन्धित कार्य लगामित मी पुरी जो दुश्ख भोगना पढ़ता हैं; चद कडिनाई मादइम दी है । दिप्यगे ! इस प्रकार पुरुपगण इन तथा ऐसे दी अन्य कश्टसाध्य उपायोस क्रम: अपने य्राजापत्य आदि गुम डोकोंफो प्रास करते दें; दिल स्त्रियोँ तो केवल तन-मन-वचनस पॉतिकी सेवा करनेरे की दितिकारिगी दोकर पतिके समान युस लोकोको: जो पच्यीसत अत्यन्त परिश्रम मिलते दं; अनायास दी घास कर लेनी दें । इसीलिये है द्राहमणों ! मैने तीसरी यार यद कड़ा था कि स्त्रियोँ चर साय ( शर्ट दे |? इसी प्रकार थाग्त्रिंपिं सभी जगद यद ब्रतिद टै कि पतिकी संवामाचस दी स्त्री परम गःतकोा प्राप्त दो जाती हैं | श्रीतुलपीदासनीन समचय्तिमानख् अरप्यकाटम कद्दा है-- पट धर्म पद शत सेसा 1 फाये यचन सन पड़ पद ग्रमा ॥ दिनु श्रम नि परम रवि बाद । पतिज्त पर्स छवि छत गदई ॥ इससे यद सिंद दो जाता दै कि खरिर्यीका केवछ पतिकी सेवानाबस दी थिना डी परिश्रम और सुगमतासि परम गतिकी प्राप्ति हो जाती टै। इतना दी नहीं; वह पातित्रत्ययर्मके प्रमावस अपने पतिकों मी प्रसमघाममें ले जाती है । पद्मपुराणके नश्यिग्दर्म आया दै कि झुमा नामक्री पतित्रता स्त्री पाति- ब्रत्य घर्मका पाठन करती डुई पतिसदिति मगवानके परम थामको चली गयी | सके सम्बन्ध स्वयं भगवाससे बह कद दै छि छुमा पतित्रता मरे समान दे; चद अपने सत्तीत्वके प्रमायस ही भूत: मविष्य ओर वर्तमान तीनों कार्टोकी बातें जानती है । पडपुराणकं भूमिखण्डमें बर्णन आता दैं कि कुकल चेप्यकी पत्नी सुकछाकों उसके पातिवत्यके य्रमावस म्रसन्न देकर द्रह्माः विष्णु+ मदेदा और इन्द्र आदि देवताओंनि साथानू दर्दान देकर चर मॉगनेकों कड़ा था । उस समय कुकछने पृूछा--्देवताओ ! आपलोग मेरे किस पृण्यक कांसग पलीसद्ति मुझे वर टेसे पथारे हैं ।र तय इसने कड़ा--दमलाग तुम्हारी घर्मय्ली सत्ती सुफ़्लाके पातित्रत्यमे संतुप्र दोकर तुम्टें वर देना चाइते हैं ।* सुकदाकें सदानवारका मादात्य्य सुनकर उसके पति कुक बड़े दर्पित हुए | तयश्चान उन दोनोंके द्वारा मगवानकी मक्ति और धर्ममे अनुयग-प्रातिका चर मेगिमेपर देवतागण उन्हें अमीर वर देकर पत्तिबताकी स्तुति करते दए; अपने ढोकको चले गये । यदि कई कि पति मदन नील आर नरकमें ठे जाने योग्य पाय कर्म करग्रवाला है तथा उसकी स्त्री पतित्रता दे दोवड स्त्री पतिक़ें साथ नरक लावगी या उत्तम गतिकों ग्राम होगी १” तो इसका उत्तर यदद दे कि पातित्रत्व-घर्मके पाठनकें प्रभाव चढ़ अपने पतिसदिति उत्तम गतिकों य्ाप्त दागी । उस स्त्रीके पातिब्रत्यकें प्रमावसे उसका पति भी डद्ध और परम परदिन्र हो जायगा 1 पाततिब्रत्य-घर्मका पाठन करने वानी स्रीकी दर्गति तो कमी हो ही नदीं सकती ओर पत्िसे उसका पियोग मी नहीं दोता । ऐसी पर्रिस्थितिमें उसका पति टी उसके ग्रमावस परम पवित्र हो जाता दे और बद अपनी पत्नीमसट्ति उत्तम गतिकों प्रात कर लेता हूं | इसीछिये मदामुिं चेदच्यातजीनि सरियांको साधु ( श्रेष्ठ और उनको अतिदय धन्यवाद दिया है । अत मुद्दागिन माता-चहिनोंकों सा स्वर्ण-अवसर कमी दाथतें नहीं जाने देना चादिये; अपि तु मन: वचन: कर्मसे अपने पातिव्रत्य- घर्मका ततस्तास प्राठन करके अपनी आत्माका कल्याण बीघातिशीघ्र कर लेना चादिये; अन्यया यदि यद अवसर दाथने स्वल्ा लायगा तो महान पशात्ताय क्ररना पढ़ेंगा; वर्योकि स्त्रीनातिकें कत्याणकें लिये मंगवानने यह बहुत ही उत्तम शरीर सर उपाय चताया दै । इस प्रकार इस विायादम श्रीनाय्दपुराण और श्रीविप्युपुराण इन दो पुराणाका अनुवाद संश्ेपरमें दिया गया है | इन दोनों मदृस्वदर्ण म्रतिद्ध पुरागेक्रि संश्ेप करनेंके चदामे इनका विदेष सनोयोगडबक अध्ययन करनेसे मुझे तो चदत दी छाम हुआ हैं । यास्त्रोंम सयरर्णाकी बड़ी मड़िंमा गायी गयी है । वेदोकी माँति पुराण थीं दमारे यदीं अनादि माने गये ई । उनका रचयिता कोई नददीं दै । श्रीवदव्यासजी मी इनके सँक्ठन- ' कर्ता तथा संश्ेपक दी माने गये ई | इसीलिये वेदंक्रि बाद पुरार्णोका दी दमांर यददीं सबसे अधिक सम्मान हैं । पुराणोंमिं लोकिक ओर पास्टोकिक उन्नतिके अनेक मदच्चदूण साधनोंका वर्णन मिलता दै। जिनको परद-सुनकर और फिर अनुश्नमें लाकर मनुष्य परम पदतक प्राप्त कर सकता है ।1अतएव जिस श्र ड्




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