भोरे की बेला | Bheruo Ke Bela
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भोर कौ वेला | १७.
“तुम्हें क्या देखे, मनोरमा ? तुम्हें तो रोज ही देखता हूँ 1”
“मैं भी तुम्हें रोज देखती हूँ। मैं झूठ चहीं बोलती अनूप बावू ! जब से.
तुम्हें देखा है, मैं पागल हो गई हूँ। तुम मेरे मन में बस गये हो। मेरी आंखों
में समा गये हो । न जाने मुझे क्या हो गया है ! मैं खुद नहीं सोच पा रही
हूँ। ' |
अब श्रनूप बुरी तरह चौंक गया। वह आँखें फाड़-फाड़कर मनो रमा
. की ओर देखने लगा था। उसने सपने में भी नहीं सोचा कि मनोरमा उसपर
आसक्त हो जायेगी । वह् धमं -संकट मे पड़ गया । उसके चेहरे पर हवाद्रयां
उड़ने लगीं । -
अभी अनूप सोच-विचार में ही था कि मनोरमा ने अपना सिर उसके
दाहिने कन्धे पर टिका दिया 1 वह् अधीर होकर बोली--“तुमने वतलाया
नहीं, अनूप बावू, कि मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ ? ”
“तुम बहुत अच्छी हो, मतोरमा।”
यह कहने के साथ अनूप अलग हटकर बैठ गया। मनोरमा को उसका
यह व्यवहार बहुत बुरा लगा | वह चिढ़ गई और असन्तुष्ट होकर बोली----
“जव मदं औरत को प्यार करता है, तो वह उसका मृह-ही-मूंह देखा करता
है; लेकिन जब औरत मर्द को चाहती है, तब मर्द ऐसे ही नखरे दिखलाता
है। मैं पूछती हूँ कि मेरी देह में काँटे हैं कया, जो तुम अलग हटकर बंठ5
गये ? यह मेरा अपमात नहीं तो और क्या है ? ”
“मैं तुमसे क्षमा चाहता हूँ, मनोरमा। मैंने तुम्हारा कोई श्रपमान नहीं
किया] दिवाकर बाबू में क्या कमी है, जो तुम मेरी ओर झुक रही हो ?
में नीलिमा के साथ को्ेशिप के लिए आया हूँ, मेरा व्याह उसके ध्षाथ
होगा ।”
“तुम कोर्ट शिप के लिए आये हो, तुम्हारा व्याह नीलिमा से होगा--
इससे मैं इन्कार नहीं करती, लेकिन मेरा भी मन तुम्हारी ओर वरबस ही
खिच गया है। मैं***। ु
अभी मनोरमा इतना ही कह पाई थी कि अनूप बीच में बोल उठा---
“मैं गलत कदम नहीं उठा सकता, मनोरमा ! मैं पटना में रहता हूँ, तुम
मच्सूरी में रहती हो। मेरा और तुम्हारा साथ कभी नहीं हो/ त्या ।
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