हिन्दू मुसलिम मेल | Hindu Muslim Mail

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १६. ] ११ भाषामेद लिपि की श्रपेत्षा भाषा का सवात्र और भी सरल है जबर्दस्तो उसे আহি बनाया जात है । लिपि तो देखने में जरा अलग मालूम होती है ओर उसमें सरल कठिन का भेद नहीं किया जासकता पर भाषा तो हिंदी उद्‌ एक ही है । दोनों का व्याकरण एक है क्रियाएं एक हैं अधिझांश शब्द एक हैं, कुछ दिनों से संस्कृतवालों ने संस्कृत शब्द चढ़ाने शुरु झिये, अरबी फारसीवाल्ों ने अरबी फारती शब्द, बस एक भाषा के दो रूप होगये और इसपर हम लड़ने लगे । हम दया कहें कि मिहर, इसीपर हमारी मिहरबानी श्र दयालुता का दिवाला निरूच् गया, प्रम और मुहब्बत में ही प्रेम ओर सुहन्वत न रही 1 भाषा तो इसलिये हे हि हम पनी बात दूपरों को समझा सकें, बोलने कौ सफलता तमी है जब्र ज्यादा से ज्यादा श्रादमी हमारी बात समझे अगर हम्तारो भाषा इतनों कठिन है कि दुसरे उसे समझ नहीं पाते तो यह हमारे लिये शर्म और दुर्भाग्य की बात है। जब मैं दिल्ली तरफ जाता हूँ तब व्याख्यान देने में मुझे कुछ शर्म सी मालूम होने लगती हे, क्योंकि मध्यप्रांत नित्रासी होने क कारण आर जिन्दगो भर संस्कृत पढ़ाने के कारण मेरी माषा इतनी च्छ रथात्‌ सरल्ञ नही. है कि वहां के मस्र- लमान पूरी तरह समम सकें । इसलियें मैं कोशिश करता हूँ कि मेरे. बोलने में ज्यादा संस्कृत शब्द न आने पाव, इष काम में जितना सफल्न होता हूँ उतनी ही सुफे खुशी होवी है और जितना नहीं हो पाता उतना ही अपने को अभागी ओर नालाय समता हूँ । सुझे यह समभन नहीं आता कि लोग इस बात मे क्या बढ्ादुरी समभते हैं कि हमारी भाषा कस से कम आदमी समझे । ऐस्टा है तो पामन्न-को तरह चिह्नञाइये कोई न समस्ठेगा, फिर समझते रहिये कि श्राप बढ़े परिडत हैं।.. | हरएक बोलनेवाल को यह समभना चहिये छ बोलने का मजा ज्यादा से ज्यादा च्र द्मि्योंको समाने मं है 1 पागल डी तरह बेसमभी को बतं वक्नेनें न्ह) ` 7774




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