अपनी दुनिया | Apni Dunia
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपनी दुनिया [ १७
भम श ९../ ९
बे-तुरी है। शहनाई से देहाती गीत बार-बार गाई जा रही है | ढोलक-
झल की आवाज आकाश को सिर पर उठाने का दावा करती ই?
श्रीमती निश्चरेणी ने समझा--पासही में कहीं शादी का समारोह
है। उसने नाठकीय ढंग से खिड़की से सिर निकाल पेड़ों से ढके हुए
किनारे की ओर उत्सुकता से भरी नज़र डाली ।
धाट पर बँधी हुई नाव के माँझी से मैंने पूछा--क्यों जी, वहाँ बाजा
थो बज रहा है
माँझी ने कहा--भआज ज़मीदार का पुण्याह ই!
पुण्याह का अर्थ विवाह नहीं है । अतः यह सुनकर निश्चरिणी देवी
के चेहरे पर मायूसी छा गयी । वह पेड़ों की छाबमें ग्रामीण वर वधू को
देखने के लिए उत्सुक थीं-।
मैंने कहा--पुण्याह का अथ ज़र्मीदारों के सम्बत का पहला दिन है ¦
आज प्रजा कुछ न कुछ माछंगुजारी ले जाकर छावनी में वर वेशधारी
कारिन्दे को देगी | यह रकम उस दिन गिनना मना है। यह प्रथा वैसी
ही है, जैसे वृक्ष आनन्द पूर्वक वसन्त को पुष्पांजलि भेठ करते हैं ।
प्रकाशवती ने कहा-माल्युजारी अदा करने के अवसर पर ब.जे-गाजे
की क्या जरूरत है ?
श्रीमान् प्थ्वीराज ने कहा--प्रजा तो बलिदान का बकरा है। बकरे
को बलछि देते समय क्या ग।जे-बाजे नहीं बजते हैं ? आज मालगुजारी
देवी के समीप बलिदान का बाजा बज रहा है|
मैंने कहा---ऐसा खयाल तुम छोगों का हो सकता है; किन्तु मेरे
खयाल में तो यदि देना ही हो, तो एकदम पशु-हत्या की तरह न देकर
उसमें जितना ही ऊँचा भाव रखा जाय, उतना ही अच्छा है |
श्रीमान् पृथ्वीराज ने कहा--मैं तो इस बात का कायल हूँ कि
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