महावीर और बुद्ध की समसामयिकता | Mahavir Aur Buddha Ki Samasamayikata

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Mahavir Aur Buddha Ki Samasamayikata by मुनि श्री नगराज जी - Muni Shri Nagraj Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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< ड श्री बांठियाजी ने आइचर्य प्रकट किया है कि उक्त प्रकारूक॑ बहुत सारे प्रमाणों के रहते तेरापंध सम्प्रदाय की यह मान्यता कैसे बनी ९ वस्तु- ' स्थिति यह्‌ है कि साम्प्रदायिक मान्यता का तो यह प्रदन ही नहीं है। महावीर ज्येष्ठ हों या बुद्ध, महावीर पूर्व निर्वाण-प्राप्त हों या बुद्ध--इनसे तेरापंथ की किसी आधारभूत धारणा में कोई अन्तर आने वाला नहीं है । मुनिश्नरी नयमलजी की ओर से भी महावीर के ज्येष्ठ होमे की जो धारणा थी, वह जैन और बौद्ध वरम्पराग्रो में व इतिहास में उपलब्ध कुछेक मूलभूत तथ्यों पर ही आधारित थी । मूनिश्री नथमलजी ने अपने ग्रन्थ जैन-दर्गंत के मौलिक तत्व में महावीर के ४० वर्ष बाद बुद्ध का होता लिखा है | वह उनकी स्व॒तन्त्र शोध का निष्कर्ष न होकर किसी एक झभिमत का स्वीकार-मात्र था। प्रस्तुत पुस्तक में इस विपय को नये सिरे से ही विशुद्ध ऐतिहासिक हृष्टिकोणों से सोचा गया है। यह कोई ऐसा विपय नहीं था, जो प्राचीन धारणाओं से वदछकर नहीं छिखा जा सकता था । तटस्थ आवना में जो सत्य छगा, वह हद्वतापुर्वक लिखा गया है । जो कुछ माना गया है, उसमें भी अपेक्षित परिष्कार के छिए सदेव भव्रकाश ह्ठै। प्रमस्परा ओर इतिहास ईस्वी सन्‌ १६५६ के मई मास के (वेशाख ) की पूर्णिमा को भगवान्‌ बुद्ध को २५०० वीं महापरिनिर्वाण-तिथि मनाई जा चुकी है । यह समय सिलोनी गाथा सहावंश की कारू-गणना का है, जो बौद्ध-परम्परा में सर्वाधिक रूप से प्रचलित है। इतर काल-गणनाओं को माननेवाले बौद्ध सम्प्रदाय भी इस वर्ष को मनाने में सम्मिलित रहे हैं।' प्रस्तुत पुस्तक में जो निष्कर्प प्रस्तुत हुआ है, उसके अनुसार बुद्ध-निर्वाण को २५०० वर्ष पूर्ण होने में अब भी लगभग ३५ वर्ष शेष हैं। प्रम्परा-मान्य चीर-निर्वाण संवत्‌ और प्रस्तुत पुस्त काल-गणना दोनों केटी अनुसार महावीरः-निर्वाण के २५०० वपं बव से १० वपे वाद (ईस्वी सन्‌ (१६७३) मे पूर्णं होते ह~ यह एक सहज स्थिति है! परम्परा कमी इतिटस्न-सम्मत १. बौद्ध धर्मं के २५०० वपं, “अजकर' का वापिक्त जंक, भूमिका डा० राधाकृप्णन्‌, पृष्ठ १. ।




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