समीक्षा-शास्त्र | Samiksha Shastar

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Samiksha Shastar by डॉ० दशरथ ओझा - Dr. Dasharath Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला श्रध्याय साहित्य ओर समाज स्काटजेम्स में पाश्चात्य श्रालोचना-पद्धति पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि एक युग था जब आलोचना के क्षेत्र में श्ररिस्टाटल के सिद्धान्त उद्धृत किये जाते थे किन्तु अव मैथ्यू श्रारनोल्ड की विश्लेपण-पद्धति मान्य बन गई है। उक्त दोनी भालोचको के दृष्टिकोण मे भ्रन्तर है। अरस्तू श्रालोचक का सम्बन्ध कला से जोडता है और भ्रारनोल्ड श्रालोचक का सम्बन्ध सामाजिक जीवन से जोडता है । भ्रारनोत्ड ने साहित्य, साहित्यिक श्रौर श्रालोचक का सम्बन्ध समाज से इस रूप मे जोड दिया, जिसको भलक इसमे पूवे दिखाई नही पडती । भ्राज का साहित्यिक ओर श्रालोचक काव्य के साध्यम से समाज की मनोवृत्तियो एव उसके श्राचार-विचारो की श्रालोचना करना चाहता हे । श्ररिस्टाटल की पद्धति का भ्रन॒यायी भ्रालोचक, कवि एवे कलाकार से सहानु- भूति रखता था, किन्तु श्रारनोल्ड का मतानुयायी मुख्यतया समाज कै प्रति श्रपना कुद कत्तव्य सममकर नालोचना करता है । वहं एसी उवरा भ्रमि प्रस्तुत करना चाहता है, जिसमें समाज में वीज रूप से उपलब्ध साहित्यिक मौलिकता फल- फूल सके । वह समाज में एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहता है, जिसमें कला श्रौर कलाकार मानव-जीवन को पूर्णाता की ओर श्रग्रसर कर सकं । वीसवी शताब्दी मे अ्रालोचना की इस श्रभिनव पद्धति का निखरा रूप दिखाई पडा ओर इसका प्रभाव भारत कै भ्रालोचको श्रौर कचियो एवं कलाकारो पर श्रनिवाये रूप से पडा । हमारे देश में सामाजिक सुधार-सम्बन्धी श्रान्दोलन के अनुकूल होने के कारण इसका प्रभाव श्रत्यन्त व्यापक हुआ | समाज और साहित्य के इस तु सम्बन्ध को हम यहा विस्तार से देखेंगे । हमारे राष्ट्र में एक नयी चेतना श्रा गई है । आर्थिक वैषम्य समाज की झखो में बुरी तरह खटकने लगा है । हमारे राष्ट्र का आदर्श भी समाजवाद पर




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