धर्मवीर भारती के साहित्य में जीवन मूल्य | Dharmveer Bhartee Ke Sahitya Me Jeevan Mulya
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
74.17 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्ता वस्तुपरक है किन्तु प्रमातूसापेक्ष होने के कारण वह व्यक्तिपरक है।”'
जीवन मूल्यों की स्थापना के सन्दर्भ में विवेचन करते हुए डॉ0 लक्ष्मीकान्त वर्मा ने
लिखा है -
अनुभूति और जीने की अधिकार वांछा को कलाकार (या साधारण जन) किसी भी
कर्मश्रंखला के माध्यम से व्यक्त करने की चेष्टा करता है तो वहीं वह मानव-मूल्यों की
स्थापना करता है।””
डॉ0 रमेश देशमुख की मान्यता है कि - ” मानवी जीवन को मूल्यवान बनाने की
क्षमता रखने वाले गुणों को जीवन मूल्य कहा जाता है। मुल्य शाश्वत व्यवहार है। इनका
निर्माण मानव के साथ-साथ हुआ है। यदि इनका अन्त होगा तो सभ्यता के साथ-साथ मानवता
भी समाप्त हो जायेगी ।”*
इस प्रकार हम निष्कर्ण रूप में कह सकते हैं कि जन्म से मुत्य॒ पर्यन्त होने वाले
जिन संस्कारों के सहारे निरन्तर सत्य के समीप पहुँचने का मार्ग प्रशस्त होता है ये ही संस्कार
जीवन मूल्य कहे जाते हैं। इस प्रकार सत्यता, दया, विनय जो दया का ही सार रूप है धैर्य,
संतोष, समता, शील, ईमानदारी, एवं अनुशासन आदि ही जीवन मुल्य है; जो मानव के भौतिक
एवं आध्यात्मिक उन्नयन श् आवश्यक होते हैं और मानव को प्रगतिशील मानवीय जीवन की
सार्थकता को सिद्ध करते हैं। यदि साहित्यिक दृष्टि से विचार करें तो हम कह सकते हैं कि
रचना के भीतर विद्यमान रहने वाला ऐसा उद्देश्य जो उसे किसी सामाजिक आदर्श, व्यक्तिगत
उच्चता आदि से युक्त करता हो, उसे जीवन मूल्य कहते हैं। हर
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|. भारतीय सौन्दर्यशास्त्र की भूमिका, डॉ0 नगेन्द्र, पु0 160
कु लहर, सितम्बर 60, डॉ0 लक्ष्मीकान्त वर्मा, पु0 44.
3. आठवें दशक की हिन्दी कहानी में जीवन मूल्य, ... डॉ0 रमेश देशमुख्य, पु0 9
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