किसान - राज | Kisan Raj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किसान-गुणु-गाधा ११
क दृसरे पर ्रवलम्व्ित 80९९168 तियो के सद्धट कौ
विजय को देखता है | वह डाविन के -जीवन-संघपे के अधथम्त्य
सिद्धान्त पर न चल कर प्रिस क्रोपाटकिन के अधिक सत्य
पारस्परिक सहयोग फे सिद्धान्त को अपना जीवन-सिद्धान्त
बनाता है। चह यह जानता है कि संसार के इतिहास में विजय
उनकी नहीं हुईं जिन्हाने दिसा या रक्षात्मक शक्तियों से विशेषता
उपार्जित की । शाक्ति के सत्वर प्रयोग मे कोई ऐसी वात है जो स्वयं
उसके उदेश्य को विफल कर देतो है | इसका मुख्य दोप यह ই
कि उसमे स्वेच्छा प्रेरित सहयोग के लिये स्थान तथा अवसर
नही रहता । क्रिसान यह जानता है कि भोतिकवादी पाश्चात्य
संसार में भी, शेर मारे जाते है और गौएं पात्नी जाती है ।
किसान अपने सहज ज्ञान से -ही यह जानता है कि जीवन-_
संघपे के सिद्धान्त को सानने बाले डर्धिन ने दी अपनी
1५ 068९९०४ ० गप ण 020 ( मनुष्य की उत्पत्ति )
नामक सुप्रसिद्ध पुस्तक के दोसो तीनवें प्र पर यह कहा है किं
सदाचारं का उच्चादृशं व्यक्ति के लिए तात्कातिक भत्ते ही लाभ
प्रदान न करे परन्तु एक 9708 जाति के लिए दूसरी ऐसी जाति के
मुकाबिले में त्रह्मास्त्र सिद्ध होता है जिसमे सदाचार की तुलना-
त्मक कमी हो | इसीलिए किसानो का जीवन -अत है. कि वे प्रत्येक
देवता को, विश्व और समाज की समस्त प्रगति-पोपक शक्तियों
को उनका यज्ञ-भाग देते है इसमे वे चोरी नही करते क्योकि वे
जाजते है कि परस्परं भावयन्त. ही सबके सब श्रेय को प्राप्त
होंग। यज्ञ भावित देवता ही इष्ट-भोग प्रदान करेंगे।
৬ পদ স্পিন म न यय न পিপি পাপা পিস
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