किसान - राज | Kisan Raj

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Kisan Raj by कृष्णदत्त पालीवाल - Krishan paliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किसान-गुणु-गाधा ११ क दृसरे पर ्रवलम्व्ित 80९९168 तियो के सद्धट कौ विजय को देखता है | वह डाविन के -जीवन-संघपे के अधथम्त्य सिद्धान्त पर न चल कर प्रिस क्रोपाटकिन के अधिक सत्य पारस्परिक सहयोग फे सिद्धान्त को अपना जीवन-सिद्धान्त बनाता है। चह यह जानता है कि संसार के इतिहास में विजय उनकी नहीं हुईं जिन्हाने दिसा या रक्षात्मक शक्तियों से विशेषता उपार्जित की । शाक्ति के सत्वर प्रयोग मे कोई ऐसी वात है जो स्वयं उसके उदेश्य को विफल कर देतो है | इसका मुख्य दोप यह ই कि उसमे स्वेच्छा प्रेरित सहयोग के लिये स्थान तथा अवसर नही रहता । क्रिसान यह जानता है कि भोतिकवादी पाश्चात्य संसार में भी, शेर मारे जाते है और गौएं पात्नी जाती है । किसान अपने सहज ज्ञान से -ही यह जानता है कि जीवन-_ संघपे के सिद्धान्त को सानने बाले डर्धिन ने दी अपनी 1५ 068९९०४ ० गप ण 020 ( मनुष्य की उत्पत्ति ) नामक सुप्रसिद्ध पुस्तक के दोसो तीनवें प्र पर यह कहा है किं सदाचारं का उच्चादृशं व्यक्ति के लिए तात्कातिक भत्ते ही लाभ प्रदान न करे परन्तु एक 9708 जाति के लिए दूसरी ऐसी जाति के मुकाबिले में त्रह्मास्त्र सिद्ध होता है जिसमे सदाचार की तुलना- त्मक कमी हो | इसीलिए किसानो का जीवन -अत है. कि वे प्रत्येक देवता को, विश्व और समाज की समस्त प्रगति-पोपक शक्तियों को उनका यज्ञ-भाग देते है इसमे वे चोरी नही करते क्योकि वे जाजते है कि परस्परं भावयन्त. ही सबके सब श्रेय को प्राप्त होंग। यज्ञ भावित देवता ही इष्ट-भोग प्रदान करेंगे। ৬ পদ স্পিন म न यय न পিপি পাপা পিস




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