भारतीय भाषाशास्त्रीय चिंतन | Bhartiya Bhashashastriya Chintan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अव्ययन पर विशेष रूप से केन्द्रित र्हा, त्या লগত জানা হল वेज्ञानिक- विश्लेषण त्था
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का विवेचन हग्ना है । परन्त विद्वानों की इस न्यता के वषय में शका करता हा उचित
होगा | वस्तुत: पारितनि के समय में ही वामिकता' से मुक्त और स्वतंत्र हो गया था.
तथा जसाक पहल कहा जा चुका हूं उसका व्याकरण व्याकररा क लिए लिखा गया
लगता हैं कि जसे पाणिनि का मूल उदज्य किसी वामिकता के आग्रह से वैदिक भाषा का
वर्णन करना था ही नहीं,“ वह और ही कुछ करना चाहता था । वह संस्छत भाषा के उस
मानक हूप का वर्णन करना चाहता था जो ब्ागे एक सर्व-सामान्य भाषा के आदर्श रूप में
प्रतिप्ठित हो सके । ( पाणिनि के पश्चात् हां सस्छत भापा न कंबल भारत का एक सब-
सामान्य राष्ट्र-मापा सिद्ध हुई थी, वरत् बह समूचे एशिया में एक बंतर्देशीय भाषा के रूप
में प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित हुई ) । वास्तव में अमी तक यह एक उलकी हुई समस्या ही है,
क्योंकि पासितनि ने स्वयं अपने व्याकरण शास्त्र के प्रवोजन के विषय में कुछ भी नहीं कहा
। ऐसी स्थिति में बह नी सत्य हो सकता है कि जिस माषा का रूप-वर्णान पारियनि ने कर
दिया, वही उसके कारण, भारत की एक सामान्य साहित्यिक भाषा सिद्ध हो गई | यहाँ
इस समस्या के विषय में विज्वेष कुछ और कहने की आवश्यता नहीं है, परन्तु इस बात का
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