जीवन - निर्माण | Jivan - Nirman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८४ [ जीवन-निर्माण याद रखो आत्म-विश्वास ही जीवन का प्रकाश है । इसे लौकर आप अपना लक्ष्य नहीं पा प़कते | आत्म-विश्वास ही अमृत है, इसे विना पीये आप जी नहीं सकते । आत्प-विर्वासं की जगमगाती दीपरिखा को देखना हो तो महा- राणा प्रताप कै जीवन को देखो । स्वतन्त्रता का दीवाना वहं प्रताप वित्तोड़ के राजवैभव को छोड़कर जज्जुलों की खाक छानता फिरा। कठोर चट्टानों पर सोया और घास की रोटियों पर जिया । फिर भी বসা অন্ন जैसा प्रवल झन्रु उसे भूका सका ? इतवी मुस्ीव्तों को सहने के वाबजूद भी उसने अकवर कौ अधीनेता स्वीकार नहीं की । अडिग हिमालय की भाँति वह सदेव उन्नत और अजेय वना रहा। महाराणा प्रताप की इस भहावता का क्या कारण था, क्या आप बतला सकेंगे ? सीधी-सादी वात है उनके आत्म-विश्वास ने ही उन्हें उतनी शक्ति दी थी, जिससे वे अकबर जैसे शत्रु के वाँत खट्टे कर सके। अहनिश्य मुसीवत्तों और कठिनाइयों के तृफानों से जूक सके। आात्म- विश्वास की ज्योति निरन्तर उनके हृदय में जलती रही। उस्ची के प्रकाश में वे आगे बढ़ते रहे, अपने लक्ष्य की ओर । भारत की स्वतन्त्रता किस की साधना से ह्मे निली ? महात्मा ग्रांधी के त्याग और तप के वल पर । आप जातते हैं महात्मा भांधी के इस अद्भुत और अपूर्व कार्य का सच्चा रहस्य क्या था ? शायद नही, तो सुनिए । महात्मा गांधी को अपने ऊपर, अपने सिद्धान्तों पर, अपने मायै यर पुर्ण विश्वास था । जिस सत्य और अहिसा के मार्ग को उन्होंने अपनाया था, उससे तिलमात्र मी वे इधर-उधर नहीं हटठे। जब शासत के भीषण दमन चक्र के कारण हिंसा का वाजार गर्म हो उठता था, हजारों नर-दु गयों के सिर फूल की तरह कट कर गिरते लगते थे, तब भी महात्मा सावी की आस्था सत्य गौर अर्दिता सेनी दमी । वरस उसका यह आत्म-विश्वास ही स्वतन्त्रता के प्रकाश को गुलाम भारत की धरती पर खींच लाया!




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