श्री योगसार पर प्रवचन | Shri Yogsaar Par Pravachan

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Shri Yogsaar Par Pravachan by पं.कमलकुमार जैन - Pt. Kamalkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४४, उसी शरीर के परिसाण हो जाते हे तथा जब बडा शरीर पाता हे तब वे ही आत्म प्रदेश विस्तृत होफर उस बड़े शरीर रूप हो जाते है । हसे सिवाय वह आतमा उत्पाद व्यय भ्रोग्य स्वरूप 6 । साख्य-सीसासक और योग कहते है कि आत्मा सपथा नित्य हे । स्वेधा नित्य होने के कारण उसमें उत्पाद-व्यय नहीं दो सकता परन्तु इन छोगो का यह कहना ठीक नही है। फ्योकि एक आत्मा जो आज सुखी हे वही कल दु.खी हो जाता हूँ तथा जो आज हुःखी है वह कल सुल्ली है। इस प्रकार आत्मा में उत्पाद ओर बिनाश स्पष्ट रीति से प्रतीत होता रहता है। अतः आत्मा सर्वथा नित्य नहीं है किन्तु उसाद्‌-व्यय भ्रोव्य स्वरूप दे । बोद्ध मत बाला सातनता हे कि आत्सा का स्वभाव ज्ञान रूप है तथा ज्ञान से सदा उत्पाद-विनाश होता रहता है । कभी नान वदता दे कभी त्तान घटता हं अतः सर्वथा नित्य नहीं है किन्तु उत्पाद-उ्यय स्वरूप हे । बौद्ध मत वाला आत्मा को भ्रीव्य स्वरूप नहीं मानता परन्तु उसका यह मानना भी ठीक नहीं है--फयोंकि यदि आत्मा से লীভতবলা ল माना जायगा तो म॑ चही है जो बालक अवस्था में ऐसा था और कुमार अवस्था म फेसा था! बह ज प्रत्येक जीब को पत्यक्ष विज्ञान होता है सो नहीं होना चाहिये। यदि आत्मा को सर्वेधा उत्पाद-व्यय स्वरूप ही माना जायगा श्रीव्य रूप न माना जायेगा तो फिर लेन-देन का व्यवहार व धरोहर रखने ओर रेने का व्यवहार कभी नहीं हयो सकेगा परन्तु यह सव व्यवहार होते हे ओर मं वही हू । यह्‌ प्रव्यभिनान सवको होता हे। इससे स्पष्ट होता पै कि आत्मा भौव्य स्वरूप हे। दस प्रकार आत्मा का स्वरूप उत्पाद्‌-न्यय ओर प्रोभ्य स्वरूप बतला कर आश्वायं ने साख्य-मीमासक योग ओर वोद्ध का खण्डन कर दिया है। इसके सिवाय आत्मा अपने क्ञानाटि शुरण से सुशोभित होने कै कारण ही उसके निज स्वरूप फी प्राप्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति होती हं। यदि आत्मा को घ्नानादिक गुण विशिष्टन माना जायेगा तो फिर उसके निज स्वरूप की प्राप्ति घ मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। ज्ञानावरणादिक कर्म आत्मा के ज्ञानादिक गुणों को ढक लेते हे---उन कर्मो' के नाश होने से वे ज्ञानादिक गुण प्रगट हयो जाति है। इसी को निज स्वरूप अथवा मोक्ष की प्राप्ति कहते है। इससे सिद्ध होता है कि आत्मा को ज्ञाना- दिक गुण विशिष्ट मानने से द्वी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है अन्यथा कभी नहीं हो सकती ।




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