मंजरी | Manjari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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नर्मदा प्रसाद खरे - Narmada Prasad Khare
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पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी - Padumlal Punnalal Bakshi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७)
“ओहो पुरुषोत्तम बाबू ! इतने दिलों में ? मिनी कैसी है ?”
पुरुपात्तम बाबू न कहा हूं भा ता आयी हैं ।?
तब तो मैं पुरुषोत्तम बाबू को छोड़ कर भोतर चला गया। देखा तो
मिनी कमला के साथ बैठी हुई है । मित्री ने प्रणाम किया। मैंने उसे
अन्नःकरण से आशीवाद दिया । बड़ी देर तक हम लोग बैठे रहे।
इधर-उधर की खुब गप्पे' होती रहीं ।
६१ बजे हम लोग सोने गमे ।
दूसरे दिन मैं बाहर कुरसी डालकर बैठ गया। पुरुषोत्तम बाबू
अभी तक सो रहे थे। मैंने स्टेश्समेन उठा लिया। थोड़ी देर बाद मैं
फिर कुएँ की आर देखने लगा । आज भी घहाँ स्त्रियां की बसी ही भीड़
थी । आज भी सलती गगरी लिये बैठी थी। इतने में कल्न की ही
लकड़ीवाली फिर उधर स निकल पडी ।
मालती ते उसे पुकार रर कहा-- यो लकड़ी बाली ! कल तूने पैसे
नही लिये ?
बह कहने लगी “बहुत, आज भी लकड़ी त्ञायी हूँ । इन्हें भी मोल
हे ला। दानों का दाम साथ ही ले लू गी |?
मात्षती मे कदा--“अ्रच्छा |”
तन म पुरुषोत्तम बाबू आ गये। मै उनसे गप्पे मारने लगा।
गड देर मे भी से हल्ला हुआ । हम लोग घबरा कर भीतर दादे ।
देखा लकड़ी पाली + भाला ने पकड़ लिया है |
मालता आदि और चार-पाँच स्लरियाँ इबर-उघर खड़ी थीं! मुझे
देखकर सब चुप हो गयीं |
मैंने पूछा--'माजरा क्या है ?”
मालती कहने लगी --“बाबू में इस लकड़ीवाली के पैसे लाने के
लिए मीतर गयी । लोठने पर देखती हूँ कि यह नहीं है । इतने में अ।पक्रे
कमरे से कुछ आवाज़ आयी। मै चोर । चोर ! कह कर चिल्लाने लगी ।
जब भोला श्राया; तव यह् आपके कमरे में पकड़ी गयी ।”
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