पार्श्वनाथ | Parshvanath

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Parshvanath by चौथमल जी महाराज - Chauthamal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृच प्रसंग ५ ग न~ = 5 =+ ~ ^-^ ^^ শপ थ দিলা তি শী न 0 ~ পর ৯ 0 পিপাসা करता है| महापरुषों के आदश चरित का अनशीलन करते समय हमें उनके इस विकास क्रमकी ओर ध्यान देना चाहिये | इस कस को टेम टीक-ठीक तभी समझ सकते ই जब कि उनके पूवं जन्मों के चरित पर दृष्टि डाले 1 च्तमान जीवन प्रायः उनकी साधना का नदीं किन्तु एक प्रकार से उनकी सधना के फल का जीवन है. ओर इस जीवन मात्र से हमारा पथ प्रशरत नहीं हो सकता। क्योंकि चरतेंसान जीवन उनकी अंतिम मंजिल है ओर उसका भली भाँति महत्व सममनेके जिये उससे पचवर्ती संजिलों को समकता अनि- লা है। यही कारण है कि जेन साहित्य में इस प्रकार के चरित पचं जन्मों के चिचरण के साथ-साथ प्रस्तुत किये गये है । ঘন जन्मों का विवरण लिखने का एक प्रयोजन ओर भी है । सहापरुप ओर विशेषतया तीथकर अपने पववर्ती अनेक जन्मों की कठोर साधना से वर्तमान अथात्‌ तीथेकर अन्म में अत्यन्त समुन्नत अचस्था से उत्पन्न होते हू। उनका आत्मिक विकास इत्र सामान्य जनों की अपेक्षा अत्यधिक होता है । वे ज़न्स से ही विशिष्ट ज्ञान--अचधि--के घारक होते है । शारीरिक सम्पत्ति भी उनकी असाधारण होती है | यदि हम उनके सिफे वर्तमान जीवन का अध्ययन कर और पूर्व जन्मो की साधना के साथ उसका संचंध स्थापित न करें तो उनके जीचन से हम चक्तितत तो हो जाएँगे किन्तु उनका अनुकरण करते की हिम्मत न कर सकगे ! उस अवस्था में उनसे ओर हसमें जसीन-आसमान का अन्तर दिखाई पड़ेगा । हम यह विचारने लगेगें कि--भाई ! उनमें जन्मते दी इतनी शक्ति हे किं हम उनके सामने तुच्छ है। जो उनके खमान शक्तिशाली हो वही उनका अनुकरण करे । किन्तु




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