जय - पथ | Jay Path

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Jay Path by नटवरलाल स्नेही - Natavarlal Snehi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कृष्णु-मान्द्र म উদ उस धक रहे शङ्गारे पर; नौकरशाही की पडी दि । भीषण कारा के द्वार खोल; पशु ने पो्ष का किया मोल | समझा न, निशा का तिमिर निगल; रचता हे दिनमणि नव्य-सुष्टि । उस सिंह-सुवन को लोह-कड़ी, कैसे कर सकती थी हताश । चिर मुक्त समीरण सा सुभाष । ৫ ০৯৫6০ অবশ্য




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