विनय - पिटक | Vinay Pitak
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
631
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इसके देखनेसे मालूम होगा, कि विभंगके संबंधमें तो दोनों निकाय एक राय रखते ह, किन्तु
दूसरे भागके लिये स्थविरवादी ख न्ध क नाम देते हैं, और मूलसर्वास्तिवादी विनय व स्तु। लेकिन उनके
वणित विषयोको देखनेसे मालूम होगा करि खन्धक और बिन य-वस्तु दोनोंके विस्तार और संक्षेप
का ख्याल छोछ देनेपर, वह एक ही हं । खन्धककी भाति विनय-वस्तुमे भी हर एक विनय-नियमके बननेका
इतिहास दिया हुआ है। पालीमें भी पे त व त्थ, विमान वत्थु ग्रंथोंके वत्थु नामकरण उनमें कथाओंके
संग्रह होनेके कारण हुए हैं। धम्मपदकी अट्टुकथामें भी कथाके लिये व त्थु (“वस्तु ) शब्दका प्रयोग बराबर
हुआ है । इस प्रकार मूलसर्वास्तिवादियोका वि न य व स्तु (=विनयकी कथाएँ) , महावस्तु, ्षद्रकवस्तु नाम
बिल्कुल ही युक्तियुक्त हैँ । इसके विरुढ स्थविरवादियोका ख न्ध क, तथा महावग्ग, चुल्लवम्ग नाम उतने
सार्थकं नहीं हं । सच লী यह है, कि पालि-विनयपिटकवालोको भी खन्ध कका विनय-वस्तु नाम होना
उसी तरह ज्ञात था, जिस तरह सुत्तपिटकके नि का यों का आग म नाम होना । चु ल्ल व ग्ग के बारहवें
सप्तशतिका-स्कंधक (पृष्ठ. ५५७) में इसीलिये चाम्पेय कनस्कंधककी जगह चा म्पे य क-वि न य-
व स्तु कहा गया है। वहींसे यह भी मालूम होता है, कि विनयपिटकके प्रथम भाग विभंगका पुराना नाम
सु त्त-वि भंग था। मूलसर्वोस्तिवादके विनयमें पहिले भागको प्रातिमोक्ष-सूत्र और विभंग इन दो
भागोंमें बाँटा गया है। भोटग्रंथ-सम्पादकोंने विभंगको प्रातिमोक्ष-सूत्रका भाष्य (देडि-दोन्-ग्यं-छेर-
ब्शदू-प) कहा है। वस्तुत-विभंगका शब्दार्थ भी (अर्थ-)विभाजित करना ही होता है । चुल्लवग्गके सप्त-
शतिका स्कंधकमें आये सुत्त-विभंगसे मतलब प्रातिमोक्ष-सूत्रोंका भाष्य ही है। मूलसर्वास्तिवाद-विनय-
पिटकमें हम प्रातिमोक्ष-सूत्रोंकी अलग पाते हैं, किन्तु पाली विनयपिटकमें पातिमोक्खपर अलग अट्ठ-
कथा होनेपर भी उसे पिटकके भीतर सम्मिलित नहीं किया गया; कारण यह था, कि वि भं ग में वह मूल
सुत्त भी आते हैं। मेंने अपने इस अनुवादमें सुत्त-विभंगके भाष्यवाले अंशको छोक्, सिफ्फ़ प्रातिमोक्ष-
सूत्रोंकी ही लिया है।
प्रातिमोक्ष-सूत्र भिक्षु प्रातिमोक्ष और भिक्षुणी-प्रातिमोक्ष इन दो भागोंमें बँटे हुए हैं । प्रातिमोक्ष
में आये नियमोंकी संख्या मूलसर्वास्तिवाद और स्थविरवादमें इस प्रकार है--
भिक्षु-नियम स्थविरवाद मूलसर्वास्तिवाद
१--पाराजिक ४ ৫
२--संघादिसेस १३ १३
३--अ-नियत २ २
४--निस्सग्गिय पाचित्तिय ३० ३०
५--पाचित्तिय ९२ ९०
६--पाटिदेसनिय ४ ৫
3--सेखिय ¦ ७५ ११२
८--अधिकरण-समथ ७ ७
२२७ २६२
भिक्षुणी-नियम र्थविरवाद मूखसर्वास्तिवाद
१--पाराजिक ८ ८
२--संधादिसेस १७ २०
३--निस्सग्गिय पाचित्तिय ३० ३३
४--पाचित्तिय १६६ १८०
५--पाटिदेसनिय
८
११
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