विनय - पिटक | Vinay Pitak

Vinay Pitak by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ] इसके देखनेसे मालूम होगा, कि विभंगके संबंधमें तो दोनों निकाय एक राय रखते ह, किन्तु दूसरे भागके लिये स्थविरवादी ख न्ध क नाम देते हैं, और मूलसर्वास्तिवादी विनय व स्तु। लेकिन उनके वणित विषयोको देखनेसे मालूम होगा करि खन्धक और बिन य-वस्तु दोनोंके विस्तार और संक्षेप का ख्याल छोछ देनेपर, वह एक ही हं । खन्धककी भाति विनय-वस्तुमे भी हर एक विनय-नियमके बननेका इतिहास दिया हुआ है। पालीमें भी पे त व त्थ, विमान वत्थु ग्रंथोंके वत्थु नामकरण उनमें कथाओंके संग्रह होनेके कारण हुए हैं। धम्मपदकी अट्टुकथामें भी कथाके लिये व त्थु (“वस्तु ) शब्दका प्रयोग बराबर हुआ है । इस प्रकार मूलसर्वास्तिवादियोका वि न य व स्तु (=विनयकी कथाएँ) , महावस्तु, ्षद्रकवस्तु नाम बिल्कुल ही युक्तियुक्त हैँ । इसके विरुढ स्थविरवादियोका ख न्ध क, तथा महावग्ग, चुल्लवम्ग नाम उतने सार्थकं नहीं हं । सच লী यह है, कि पालि-विनयपिटकवालोको भी खन्ध कका विनय-वस्तु नाम होना उसी तरह ज्ञात था, जिस तरह सुत्तपिटकके नि का यों का आग म नाम होना । चु ल्‍ल व ग्ग के बारहवें सप्तशतिका-स्कंधक (पृष्ठ. ५५७) में इसीलिये चाम्पेय कनस्कंधककी जगह चा म्पे य क-वि न य- व स्तु कहा गया है। वहींसे यह भी मालूम होता है, कि विनयपिटकके प्रथम भाग विभंगका पुराना नाम सु त्त-वि भंग था। मूलसर्वोस्तिवादके विनयमें पहिले भागको प्रातिमोक्ष-सूत्र और विभंग इन दो भागोंमें बाँटा गया है। भोटग्रंथ-सम्पादकोंने विभंगको प्रातिमोक्ष-सूत्रका भाष्य (देडि-दोन्‌-ग्यं-छेर- ब्शदू-प) कहा है। वस्तुत-विभंगका शब्दार्थ भी (अर्थ-)विभाजित करना ही होता है । चुल्लवग्गके सप्त- शतिका स्कंधकमें आये सुत्त-विभंगसे मतलब प्रातिमोक्ष-सूत्रोंका भाष्य ही है। मूलसर्वास्तिवाद-विनय- पिटकमें हम प्रातिमोक्ष-सूत्रोंकी अलग पाते हैं, किन्तु पाली विनयपिटकमें पातिमोक्खपर अलग अट्ठ- कथा होनेपर भी उसे पिटकके भीतर सम्मिलित नहीं किया गया; कारण यह था, कि वि भं ग में वह मूल सुत्त भी आते हैं। मेंने अपने इस अनुवादमें सुत्त-विभंगके भाष्यवाले अंशको छोक्, सिफ्फ़ प्रातिमोक्ष- सूत्रोंकी ही लिया है। प्रातिमोक्ष-सूत्र भिक्षु प्रातिमोक्ष और भिक्षुणी-प्रातिमोक्ष इन दो भागोंमें बँटे हुए हैं । प्रातिमोक्ष में आये नियमोंकी संख्या मूलसर्वास्तिवाद और स्थविरवादमें इस प्रकार है-- भिक्षु-नियम स्थविरवाद मूलसर्वास्तिवाद १--पाराजिक ४ ৫ २--संघादिसेस १३ १३ ३--अ-नियत २ २ ४--निस्सग्गिय पाचित्तिय ३० ३० ५--पाचित्तिय ९२ ९० ६--पाटिदेसनिय ४ ৫ 3--सेखिय ¦ ७५ ११२ ८--अधिकरण-समथ ७ ७ २२७ २६२ भिक्षुणी-नियम र्थविरवाद मूखसर्वास्तिवाद १--पाराजिक ८ ८ २--संधादिसेस १७ २० ३--निस्सग्गिय पाचित्तिय ३० ३३ ४--पाचित्तिय १६६ १८० ५--पाटिदेसनिय ८ ११




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