गरीबी या अमीरी | Garibi Ya Amiri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.6 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्थान पर श्वेत चादर गिरा १०-१० २०-२० सिनटों तक ये दृश्य फिल्मों द्वारा दिखाने का प्रबन्ध अवश्य ही सफल हो सकता है । प्रधानतया उपयेक्त बातो का जिस रंगमंच में समावेश होगा तथा और भी अनेक छोटी छोटी बातें जिस रंगमंच की उन्नति के लिये जोड़ी जायेंगी ऐसे रंगमंच की में हिन्दी-जगत के लिये अआवश्यकता मानता हूँ । पर सेरे उपर्यक्त कथन का यह अर्थ न समभक लिया जावे कि मेरा कोई भी नाटक ऐसे रंगसंच के बिना नहीं खेला जा सकता | मेरे विनस्र मत से मेरे अधिकांश पूरे और एकांकी नाटक तो साधारण से साधारण रंगमंच पर खेले जा सकते हैं । एमेच्योर्स किसी भी स्कूल या कालेज में उन्हें खेल सकते हैं । परन्तु मेरे किसी किसी नाटक में उपयंक्त प्रकार का रंगमंच आवश्यक है इससे में इंकार नहीं कर सकता । साथ ही मेरा मत कि सिनेमा के इस टाकी युग में जब तक उपयुक्त प्रकार का रंग- मंच न हो तब तक टाकी सिनेमा से नाटक का कंपीटीशन भी संभव नहीं है| जो हिन्दी पन्द्रह करोड़ से भी अधिक मनुष्यों की मातृभाषा है जिसे तीस करोड़ से भी ब्यादा लोग समभते हैं उसका एक सी रंगमंच न दो इससे श्रधिक दुःख की और कोई घात नहीं हो सकती । नाटक भर सिनेमा दोनों को मैं राष्ट्र-निर्माण के प्रधान अंगों में मानता हूँ । सिनेमा और टाकी के इस युग में जिस अमेरिका प्रदेश में इनका सबसे प्रधान स्थान है रंगमंच की फिर से उन्नति झ्ारंभ हुई है। मुझे तो भारतवर्प में भी वह समय दूर नहीं दिखता जब जनता की रुचि फिर से नाटकों की ओर होगी आर हिन्दी के रंगमंच का भी निर्माण होगा । एक बात और कह देना झावश्यक जान पढ़ता है और इसे मैं नास्यकला मीमांसा? में भी कद्द चुका हूँ । रंगमंच का
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