सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र | Sabhasyattwarthadhigamasutram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
508
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय--सूची । ११
সি পাশাপাশি ५ न त সিট ०१ ^+
दिग्रत, देदा्रत, अनधेरदष्ड्रत, सामापिकत्रत परिप्रहृप्रमाण त्रतके अतीचार ३४५
पौषधोपदास, उपभोगपरिमोगवत, ओर अतिथि दिग्रतके भतीचार ३४५
संविभागव्रतका स्वरूप ३३५ | देदात्रतके अतीचार ३४६
सतिलनात्रतका स्वरूप ३३८ | अनथेदड्रतके भतीचार ३४६
शका! कांक्षा, बिचिकित्सा, अन्यरपरशंसा, सामायिकन्रतके अतीचार ३४७
और अन्यद्वश्सिस्तव, सम्यग्दशनके पाँच अती- पौषधेपवासबतंके अतीचार ३४८
चारोंका स्वरुप ३३९ | भोगोपभोगव्रतके अतीचार ३४९
अहिंसा आदि जतों और सप्तशीलेके पाँच. | अतिथिसंविभागके अतीचार ३४९
पाँच अतीचार २४१ | सेखनाव्रतके अतीचार ३५०
আহি জবাননাং ३४१ | दानका स्वरूप ३५१
सत्याणुत्रतके अतीचार ३४२
अरः नर টং दानमें विशेषताके कारण ३५१
ब्रह्मचयत्रतके अतीचार ३४४ इति सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥
अष्टमे अध्याय ।
बंधतत्त्वका वर्णन गोत्रकमके २ भेदोंका स्वरूप ३७३
बंधके ५ कारण मिथ्यादशन, अविरति, प्रमाद, ्रकृतिरबध-अन्तरायकमके पौव मेदक स्वरूप ३७३
ओर मोगका स्वरूप ७१३ | स्थितिबंधकी उत्कृष्ट स्थिति ३७४
बंध किसका द्वोता है?! किस तरइसे होता है! मोइनीयकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति ३७४
और उसके स्वामी कौन हैं! ३५४ | नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति ३७५
कामेणवर्गणाओंका ग्रहणरूप बंधका वणन- ३५५ | आयुकमेकी स्थिति ३७५
ग्रहणरूपबंधके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और वेदनीयकमकी स्थिति ३१७५
प्रदेशबंध ४ भेदोंका वर्णन ३५५ | गोत्रकमकी जधन्य स्थिति ३७५
प्रक्तिबंधके भेद ३५५ | बाकी कमीकी जघन्य स्थिति ३७५
১ ३५६ अनुभागबंधका ভতগ ३७६
शानावरणके पाँच भेद ३५७ | कर्मकरा विपाक किम् रूपमे होता हे 1 ३७७
दशौनावरणके ९ भेद ३५७ | नामके अनुरूप विपाक हो जानेके अनन्तर
वेदनीयकमैके २ भेद ३५७ | उन कर्मोका क्या होता है - ३५५७
मोहनीयकमके २८ मेरदौका वणेन ३७५८ । भ्रदेशबंधका वर्णन ३५८
आयुष्कप्रकृतिबंधके ४ भेद ३६५ | पुप्यरूप ओर पापरूप प्रकृतियोक्षा विभाग ३७९
नामकमेके ४२ भेदोंका स्वरूप 2६७ इति अष्टमोऽध्यायः ॥८॥
९ नवम अध्यायः 1
संवरतत्त्व ओर निञरावत्व वणेन १ द्या २ भाषा ३ एषणा ४ आदाननिक्षेपण
संबरका लक्षण ३८१ | ५ उत्सगे पाँच समितियोंका स्वरूप ३८३
किन किन कारणोंसे कर्मोंका आना रुकता है। ३८१ | १ उत्तम क्षमा २ भार्देव, ३ आजब, ४ शौच, ५
संवर-सिद्धिका कारण-तपका स्वरूप ३८१ । सत्य, ६ संयम, ७तप, < त्याथ, ५ आकिश्न्य,
गुप्तिका लक्षण ३८२ ओर १० ब्रहमचयै, दस धर्मोका सरूप ३८५
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