अभिमन्यु नाटक | Abhimanyu Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ [ अभिमन्युनाटक-
मेँ वशुपति ह. पावैतीने कहा-भपके सगतो ই ही नहीं,
शिव-भरी ! भे स्थाण हू. पावेती-वृक्ष तो बोलते नहीं
शिव-में शिवाका जीवन प्राण हूँ, पा०-तो वनमें जाकर
शब्द करो, इस प्रकार पार्वतीवचनसे निरुत्तर हुए शिव
तुम्हारी रक्षा करें ॥ १ ॥
स्त॒ति श्रीकृष्णकी ।
जय जय जय जय सुकुन्द्, नन््दके दुलारे।
शीश मुकुट तिलकभाल, काननकुण्डल विशाल,
कृण्ठ माहि गुश्नमाल, मुरली कर धारे ॥ १॥
ग्वाल्बाल लिये संग, रचत सदा रासरंग,
बजत बाँसुरी मुस्चंग, यमुनके किनारे ॥ २॥
काहूकी फोरत घट, काहूकी पकरत लट,
काहूका घूँघट झट, खोलत ठिग आ रे॥ २॥
घन धन धन श्रीमुकुन्द, काटहु दुख हरहु इन्द्र
श्रीगोविन्द, श्रीगोविन्द, श्रीगोविन्द ~, ॥ 9 ॥
कृपासिन्धु विश्वनाथः मागत वर जोर हाथ,
मसह सदा रमा साथ; इद्यमें हमारे ॥५॥
सूत्रधार-( सब जोरको देखकर ) बारम्बार धन्य है उस जगदा-
धारा सूजनहार करतारको, जिसने संसारमें अनेक प्रका-
रके पुष्पोद्यान निर्माण किये हैं; जिसमें भोति माँतिके फूल
फूल रहे हैं, उन अनोखे अनोखे पुष्पोंकी सुगन्ध सनी.
त्रिविध बयारके सश्चारसे सब संसार सुगन्धित हो रहा है,
( जागे बटकर ) अह, हाहा ! भज तो यह दरवार भीमाब्र
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