महर्षि वाल्मीकि | Maharishi Valmiki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
741 KB
कुल पष्ठ :
123
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(२)
मरा निषाद प्रतिष्ठालमयमः झाकतीः समाः
यत्कौंच मिदुनादेव अबर्थी: कामसोहितस्
चाल्मीकिक्रे आश्ममें शाल्ति थी । शिष्य भरद्वाज ऋषिको सेचार्मे था। महत्मुनि
ध्यानमें थे। एकाएकी पासके ऐेड्से कौंच पश्षीके चरेल्फारका शब्द भाया | क्रौंकका
जोड़ा तड़फड़ाकर नीचे गिरा | सुनिका ध्यान टूट गया। घायल बिड़ियोंकों पकडनेके
दिये निषाद एक ओरसे बढ़ा । बालक भरद्वाज भाट चिड़ियेके पास पहुँच वाण निका-
| लने लगा । महामुनि करुणासे पिट भये । छड़े हो गये और बढ़ते हुए लिपादको ;
| रोकते हुए करुण रमे यद वाक्च बोल यये-- 1
तेर करौच दोउ भोगरत भयउ न हिये विषाद्,
कषु न रित बिर होव हे तेरों निठुर निषाद !
व संखारफै पदे कविके दिखने चोट छायो! पीटा उमड़ उखा । करुणारसमे
| बांसुरीको तरद उसके खरयंत्रकों फू'का । ओ शब्द निकले बढ करूणासे अ्रवृत्त शापक्ते
ये। पछी कषिदा थी ! वाल्मीकिको आप ही इस श्लोकपर अचरज छुआ । उन्होंने
यद्दी ठान लिया कि इसी तरइके पद्योमें रामायण कहुंगा। उन्होंने रामायणकी कथामें
रामजीके बंशके पूर्व पुुषोंका वर्णव किया। फिर राजा वशरथकी रथर लिक्षी ; तय
| पपरायणकी फणा लिक्ली ॥
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