मुणडकोपनिषद | Mundkopnishad

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Mundkopnishad by घनश्यामदास जालान - Ghanshyamdas Jalan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ मुण्डकोपनिषद्‌ [ मुण्डक १ 0 9 1 3 षु ১ 5০৮ পপ य 3 ৮৮, < ५ गोत्राय सत्यवहाय सत्यवहनाम्ने ` इए सत्यवहनामक मुनिसे कहा । । तथा भारद्राजने अपने शिष्य अथवा पुत्र अङ्धिरासे वह परावरा-पर स्वरिष्याय पुत्राय वा परावरां ( उत्कृष्ट ) स লহ ( कनिष्ठ ) को प्राप्त हुई, अथवा पर और अबर परसात्परसादवरेण प्राप्ति सब्र विद्याओंके विषयोंकी व्याप्तिक प्राह प्रोक्ततान । भारद्वाजोडड्रिरसे परावरा परापरसबंविद्याविषय- कारण “परावरा' कही जानेवार्ली तरवा तां ~ _ वह विद्या अङ्खिरासे कही । इस प्रकार व्याप्ततां ता परवरामाद्गग्स | 'परावराम! इस कर्मपदका परोक्त प्राहेन्यनुषङ्धः ॥ २॥ | সান क्रियासे सम्बन्ध है ॥ ২ ॥ শপ शौनकर्का गरूपसाति ओर ग्रश्न रोनको ह वै महारालोङ्किरसं विधिवदुपसन्नः पप्रच्छ । कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सवंमिदं विज्ञातं भवतीति ॥ ३॥ रोनकनामक प्रसिद्ध महागृहस्थने अद्धिरक्रे पाक्त विधिपूर्वक जाकर पूछा-'भगवन्‌ ! किसके जान लिये जानेपर यह सत्र कुछ जान डिया जाता है ”” ॥ ३ ॥ शोनकः शुनकस्यापत्यं महा- ,.._ महाशाल-महागृहस्थ शॉनक- शालो महागृहस्थोउड्धिरसं॑ झनकके पुत्रने भारद्वाजक शिष्य भाग्ठाजशिष्यमाचाय विधि- , आचार्य अन्विरके पास विधिवत वद्यथाशासत्रमित्येतत्‌: उपसन्न | अर्थात्‌ शाजानुसार जाकर पुछा । उपगतः म॒न्पप्रच्छ पृष्टवान्‌ । | शोनक और अल्लिराके सम्बन्धसे दानकाङ्धिरमोः संबन्धादर्ाग्‌ ' पश्चात्‌ विधिवत्‌ बिरोषण मिचनेसे




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