मुणडकोपनिषद | Mundkopnishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)£ मुण्डकोपनिषद् [ मुण्डक १
0 9 1 3 षु ১ 5০৮ পপ य 3 ৮৮, < ५
गोत्राय सत्यवहाय सत्यवहनाम्ने ` इए सत्यवहनामक मुनिसे कहा ।
। तथा भारद्राजने अपने शिष्य अथवा
पुत्र अङ्धिरासे वह परावरा-पर
स्वरिष्याय पुत्राय वा परावरां ( उत्कृष्ट ) स লহ ( कनिष्ठ )
को प्राप्त हुई, अथवा पर और अबर
परसात्परसादवरेण प्राप्ति सब्र विद्याओंके विषयोंकी व्याप्तिक
प्राह प्रोक्ततान । भारद्वाजोडड्रिरसे
परावरा परापरसबंविद्याविषय- कारण “परावरा' कही जानेवार्ली
तरवा तां ~ _ वह विद्या अङ्खिरासे कही । इस प्रकार
व्याप्ततां ता परवरामाद्गग्स | 'परावराम! इस कर्मपदका परोक्त
प्राहेन्यनुषङ्धः ॥ २॥ | সান क्रियासे सम्बन्ध है ॥ ২ ॥
শপ
शौनकर्का गरूपसाति ओर ग्रश्न
रोनको ह वै महारालोङ्किरसं विधिवदुपसन्नः
पप्रच्छ । कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सवंमिदं विज्ञातं
भवतीति ॥ ३॥
रोनकनामक प्रसिद्ध महागृहस्थने अद्धिरक्रे पाक्त विधिपूर्वक
जाकर पूछा-'भगवन् ! किसके जान लिये जानेपर यह सत्र कुछ जान
डिया जाता है ”” ॥ ३ ॥
शोनकः शुनकस्यापत्यं महा- ,.._ महाशाल-महागृहस्थ शॉनक-
शालो महागृहस्थोउड्धिरसं॑ झनकके पुत्रने भारद्वाजक शिष्य
भाग्ठाजशिष्यमाचाय विधि- , आचार्य अन्विरके पास विधिवत
वद्यथाशासत्रमित्येतत्: उपसन्न | अर्थात् शाजानुसार जाकर पुछा ।
उपगतः म॒न्पप्रच्छ पृष्टवान् । | शोनक और अल्लिराके सम्बन्धसे
दानकाङ्धिरमोः संबन्धादर्ाग् ' पश्चात् विधिवत् बिरोषण मिचनेसे
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