तरुण भारत | Tarun Bharat

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Tarun Bharat  by देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ अरविन्द भन्दिरमें परिधमकी उस विफलता पर भगवानके ऊपर झुँकलाहट भी दिलमें पेद[ हो जाया करती थी यहाँतक कि उन्हें बहुत कुछ वक भी देते थे। किन्तु यही कुशल थी कि उससे रक्षा भी हो जायो फरती थी; एक सनन्‍्देद्द करनेवाला (5०९९) भीतर था; वही शुण-दोष निर्णय करनेके लिये (८४८४) 7170) बाहरी प्रमाण खोजता था। इस आध्या- त्पिक सेत्रको (25९11691 {1616} पहले साधनकालम হী मैंने पक्ररम दवा रकला था। इसके कारणु इस समय एक तरहसे बहुत बड़ी अछुविधाका सामना करना पड़ रहा है; हमारा विचार (लिद्धान्त) अब बिलकुल ठीक हो गया है। उसी सिद्धान्त ज्षेत्रमें अब मन खुलासे विचरण भी कर रहा है; किन्तु उसे जिस समयमें जीवनकी ओर झुकाना चाहते हैं, उस समय बड़ी ही कठिनाईका सामना करना पड़ता है। डस समय आध्यात्मिकताकी चस्तुओको फिरसे एक दूसरी शक्तिसे खोँचकर लानेका भयोञजन होता है। द्वाव (४प9978- 951০৮) मात्र दी घुरा है । एक कमीका रहना दी हमारे जीवनकी सारी विचित्रताओंके आलंगन करनेका आदर्शु# # सात्विक, राजस और तामस इन तीनोंऊ मेते ही ठिक रचना हुई है। इसमें किसीकी कमी औ्रौर किछीकी भ्रधिकता तो हो सकती है, हिन्तु किप्तीकी भी जड़ मिदा देनेले--पहले तो यह सम्भव ही नहीं है, किन्तु योगियोंके किये सम्भव भी है--रचनात्मक कार्यूरूपी शरीर टिक




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