सभा - शास्त्र | Sabha - Shastra

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Sabha - Shastra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; वचिपय-प्वेश ५ जिस कानूत के अनुसार शासन किया जाता है उसमें नागरिक स्वत्वों का समावेश नहीं है| भारतव का शासन सन्‌ १६३५ के জান के अनुसार होता हैं। इस कानून म भी नागरि स्वो करा समावेश नदीं है। पर ऐसे अनेक कानून ই जिनमें कुछ अधिकारों का अस्तित्व मानकर उनकी सीमाएँ बनाई আই ই। হন सब देशों में से किसी देश के कानूतों में इस वात का उल्लेख नहीं मिलेया कि नागरिकों को सभा करने का और संब-स्थापना का अधिकार है। इसके विपरीत, इन देशों के कानूनों में यह लिखा हुआ मिलता है कि यदि सभा के स्थान पर उपद्रव होने की सम्भावना प्रतीत हों तो पुलिस को उसे बन्द कर देना चाहिए । उनमें यह भी बताया हुआ दिखाई देता है कि यदि वैध कार्य के लिए संघ स्थापित किये जायें तो उनकी व्यवस्था कैसी होनी चाहिए। उनमें नियमन ओर नियन्त्रण की इस प्रकार की और भी बातें मिलती हैं । शासन-विधान में अधिकार का स्वीकृत होना अ्रभीष्ठ होता है । यदि इस प्रकार स्वीकृत किये गए अधिकार पर आक्रमण क्रिया जाय तो उनके लिए कानूनी उपाय होता है। यदि सभा करने का श्रधिकार हो, यानी शासन-विधान में लिखा हुआ हो थौर फिर कोई व्यक्ति सभा को भंग करें तो समा-मंग करना उसका अपराध होगा ओर उस पर हरजाने का दावा किया जा सकेगा | पर यदि सभा करने का अधिकार ही न हो ओर व्यक्तित सभा को भंग करें तो उस पर सभा को भंग करने के श्रभियोग में मुकदसा दायर न किया जा सकेगा, क्योंकि सभा-भंग करना उसका अपराध ही न होगा) यदि सभा को भंग करने वाला उप- द्रव करे तो अवश्य ही उसके खिलाफ कारवाई की जा सकेगी} यदि कोई अधिकार लिखा हुआ हो तो जनता द्वारा उसका उपयोग करते समय सरकार को आवश्यक संरक्षण ओर प्रबन्ध करना पड़ता हैं | यदि अधिकार लिखा हुआ न हो तो सरकार का कतंव्य सावजनिक्र शान्ति की रक्षा करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता । शासन-विधान में स्वीकृत अधिकार और संकेत द्वारा स्वीकृत परम्परागत अधिकार-दोनों में महत्वपूर्ण अन्तर है। वें अधिकार पर आक्रमण करना हो या उसे सीमित करना हो तो यह सिद्ध करना पढ़ता है कि ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई है कि जिससे उस अधिकार पर आक्रमण करना या उसे सीमित करना आवश्यक है। यदि वैध अधिकार पर अनावश्यक था अनु- चित आक्रमण किया जाव तो उसके विवरण का कानूती उपाय होता हं। इस देश में यदि पुलिस, समा करने की मनाही कर दे तो उसके निवारण का कोई कानूनी उपाय नहीं है। यदि अदालत मी यह फैसला दे दे कि मनाही अनुचित थी तो भी उसके खिलाफ कोई का बाई न की जा सक्रेगी, क्योंकि उस मनी




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