गुप्तकाल का सांस्कृतिक इतिहास | Gupt Kal Ka Sanskritik Ityash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
423
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुप्तकाल का सॉस्कृतिक इतिहास
बाहुबल को संयुक्त कटिबद्ध होना पड़ा। फिर जब बौद्ध धर्म अशोक के माध्यम से और
जैन धर्म उसी कुल के सम्प्रति के माध्यम से मौयंकुलीन हो गये तब एक अयं में क्षत्रिय
और बौद्ध पर्याय बन गये। इसी से ब्राह्मण धर्म के उन्नायक स्वयं ब्राह्मण पुष्यमित्र को दूसरी
सदी ई. पृ. में ब॒हद्रथ को मार, ब्राह्मणविरोधी क्षत्रिय मौर्य कुल का अन्त कर, बौद्ध
ग्रीक राजा मिनात्दर को परास्त कर उसकी राजधानी साकल मे घोषित करना पड़ा
था---“यो भे श्रमणशिरो दास्यति तस्याह दीनारशतं दास्थामि/--जो मुझे बौद्ध भिक्षु का
एक सिर देगा उसे मैं सोने के सौ सिक्के (दीनार) दूगा ।*
मौर्य
चनद्रगुप्त-बिन्दुसार के बाद क्षतियकमं अभियान भौर दिग्विजय की नीति
बदल गयी । अशोक बौद्ध हो गया ओर वह मानव जाति के इतिहास मे अकेला राजा
है जिसकी कथनी भौर करनी मे भेद न था, जिसने अपने उद्घोषित आदर्शों के अनुकूल
आचरण किया । शिलाओ ओर स्तभों पर ब्बुदवायी अपनी घोषणामो मे उसने पडो-
सियो--बौद्धो, जैनो, ब्राह्मणों, आजीवको--को प्रेम और सहिष्णुता से अपने साम्राज्य
में बसने का उपदेश किया, और स्वय पांचों पडोसी यवन (ग्रीक) राजाओं के साथ न
केवल उसने अच्छे पड़ोसी का व्यवहार किया,” बल्कि उनके राज्यों में ओपधियाँ
लगाने * (दवाएँ बटवाने ) का प्रयत्त किया था वह बौद्ध परन्तु उसकी निष्ठा में बडी
उदारतां मौर सहिष्णुना धी । उसके घोषितं उपदेश बौद्ध घमं के सिद्धातो का
निरूपण नही करते, सारे धर्मो के आधार तत्व है । उसने सयम, भावशुद्धि, कृतज्ञता,
दृढ़ भक्ति, शौच, साधुता, दया, दान, सत्य, माता-पिता, गुर और बडे बूढ़ों की
सेवा और उनके प्रति श्रद्धा तथा ब्राह्मणों, श्रमणो, बान्ध्रवो, दुखियो आदि के प्रति दान
और उचितं आदर की प्रतिष्ठा की ।
शुंग
यह सहिष्णुता भारतीय घाभिक-सामाजिक जीवन की आधार-शिला थी । इस
सहज धर्म से भारतीय राजाओं को उदासीनता कभी-कभी ही हुई। इस प्रकार की
१ दिब्यावदान, कावेल ओर नोल का संस्करण, पु. ४३२-३४। २ लिलालेख,
७ और १२। 3 शिलालेख, १३। ४ बही । ५ स्तंभलेख,
२ ओर १३; शिलालेख, ७; विशेष विचारधिमर्श के लिए देखिए डा. राधाकुमुद
सुकर्जी का अशोक, पृ. ६०-७६। हु
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