उपसकदासंगा सूत्र | Upasakadasanga Sutra

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Upasakadasanga Sutra by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में परिणत हो जाती है; उनके लिए हितकर, कल्याणकर तथा सुखकर होती है ।”' ग्राचारागचूण मे भी इसी आशय का उल्लेख है। वहाँ कहा गया है कि स्त्री, वालक वृद्ध, भ्रनपढ-सभी पर कृपा कर सब प्राणियों के प्रति समदर्शी महापुरुषों ने भ्रद्धंमागधी भाषा मे सिद्धान्तों का उपदेश किया । भ्रद्धमागधी प्राकृत का एक भेद है। दश्वेकालिक वृत्ति मे भगवान के उपदेश का प्राकृत मे होने का उल्लेख करते हुए पूर्वोक्त जेसा ही भाव व्यक्त किया गया है-- “चारित्र জাননা करने वाले बालक, स्त्री, वृद्ध, मूर्ज--अनपढ-सभी लोगो पर নয करने के लिए तत्त्वद्रष्टाश्रो-ने सिद्धान्त की रचना प्राकृत मे की ।”* भर्वंसागधी “भगवान्‌ महावीर का युग एक ऐसा समय था,ज॑ंब धामिक जगत्‌ मे अनेक प्रकार के भ्राग्रह बद्धयूल थे । उनमे भाषा का आग्रह भी एक था। सस्क्ृत धर्मं-निरूपण की भाषा मानी जाती थी। सस्कृत का जन-साधारण मे प्रचलन नही था । सामान्य जन उसे समभ नही सकते थे । साधारण जनता मे उस समय बोलचाल मे प्राकृतो का प्रचलन था । देश-भेद से उनके करई प्रकार थे, जिनमे मागधी, श्दधेमागधी, शौरसेनी, पैशाची तथा महाराष्टरी प्रमुख थी । पूर्व भारत मे भ्रद्धमागधी और मागधी तथा पश्चिम मे शौरसेनी का प्रचलन था । उत्तर-पश्चिम पैशञाची का क्षेत्र था । मध्य देश मे भहाराष्ट्री का प्रयोग होता था | शौरसेनी और मागधी के बीच के क्षेत्र मे भ्रद्धमागधी का प्रचलन था। यो भ्रद्धंमागधी, मागधी भर शौरसेनी के बीच की भाषा सिद्ध होती है। भर्थात्‌ इसका कुछ रूप (मागधी जैसा ्रौर कुच शौरसेनी जैसा है, अद्धंमागधो--आधी मागधी ऐसा नाम पडने मे सम्भवत. यही कारण रहा हो / मागधी कै तीन मुख्य लक्षण है। वहाँ श, ष, स--तीनो के लिए केवल तालव्य श का प्रयोग होता है। र के स्थान पर ल आता है। अकारान्त सज्ञाओो मे प्रथमा एक वचन मे ए विभक्ति का उपयोग होता है। भ्रद्वेमागधी मे इन तीन मे लगभग आधे लक्षण मिलते है । तालव्य श का वहाँ बिलकुल प्रयोग नही होता । भ्रकारान्त सन्ञात्रो में प्रथमा एक वचन मे ए का प्रयोग अ्रधिकाश होता है। र के स्थान पर ल का प्रयोग कही-कही होता है । अद्धमागधी की विभक्ति-रचना मे एक विशेषता और है, वहाँ सप्तमी विभक्ति में ए और म्मि के साथ-साथ अस्ि प्रत्यय का भी प्रयोग होता है जैसे-नयरे तयरम्मि, नयरसि । नवागी टीकाकारों आ्राचायं अभयदेव सूरि ने श्रौपपातिकसूत्र मे जहाँ भगवान महावीर की देशना के वर्णन के प्रसग मे भ्रद्धमागधी भाषा का उल्लेख हुआा है, वहाँ अरद्धमागधी को ऐसी भाषा १ भगव चण अ्रद्धमागहोएं भासाए धम्ममाइक्खइ |साविय ण भ्रद्धमागही भासा भासिज्जमाणी तेसि सब्बेसि आरियमणारियाण दुष्पय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सरीसिवाण अप्पणो हिय-सिव-सुहयभासत्ताए परिणमद। -समवायागसुत्र 3४ २२. २३। २ वालस्त्रीवृद्धमूर्जाणा गुणा चारित्रकाक्षिणाम्‌ । अनुग्रहार्थ तत्त्वजे॑ सिद्धान्त प्राकृत हृतः ॥ “दंशवेकालिक वृत्ति पृष्ठ २२३। [ ५]




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