हमारी परम्परा | Humari Parampara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ होकर सर्वत्र व्यापक रही है, और यही कारण है कि अनेक प्रतिकूल पुरिस्थितियों, में भी वह नष्ट न होकर अपतेको अवतक जीवित रख सकी है। लेखक का अशधिः- मत है कि वैदिक धारा की सुन्दर उदात्त भावनाएँ वस्तृत: महान्‌ आइईचेंगें:और * -विस्मय की वस्तु हैं | धामिक चिन्तन पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है | बताया गया है कि वैदिक प्रार्थवाओं का क्षेत्र अत्यन्त विशाल है। जैसे, ऋग्वेद के एकमंत्र में यू लोक को पिता और प्रृथ्वी को माता कहा गया है। मनुष्यमात्र के प्रति मित्रता आौर सदभावना रखने की कामना अनेक मन्त्रों मेँ मिलती है । सां मनस्य सूक्त मेत्री- भावना का बड़ा सुन्दर उदाहरण है । विद्वाम्‌ लेखक ने आदशे-रक्षा एवं आत्मरक्षा, राजनैतिक आदर्श तथा व्यक्तिगत जीवन से संबंध रखनेवाले अनेक मन्त्रों को भी, सरल अर्थ के साथ, वेदों से उद्धत किया है। इस अध्याय के अन्त में वैदिक धारा के क्वास का भी उल्लेख है, कि किन कारणों से आज वह विलप्त-सी हो गई है। सिद्ध किया गया है कि वास का मुख्य कारण आदशहीन शुष्क कर्मकाण्ड था, जिसने रूदिमूलक पुरोहित-वगे को जन्म दिया, मौर जिससे वैदिक धारा का प्रवाह्‌ अत्यन्त मन्द पड गया । पर इसका यह्‌ आशय नहीं कि वैदिक वाङ मय का महत्व वतमान भारत के किए नहीं है । लेखक का विश्वास है कि वेदों का सच्चा अनुशीलन और स्वाध्याय आवदयक है, किन्तु अत्यन्त उदार भावना से | अन्त में ये तीन वैदिक सूक्त भावार्थ सहित हमने संकलित कर दिये हैं---ना स- दीय सूक्त, प्रथ्वौ सूक्त ओर सांमनस्य सूक्त । ऐत्तरेय ब्राह्मण से लेकर “चरवेति, चरैवेति' भी उद्धुत कर दिया है, जिसे डॉ० मंगलदेव शास्त्री ने 'श्रमगान' कहा है। इसी प्रकार कतिपय वैदिक सूक्तियाँ भी संकलित कर दी गई है। चौथे अध्याय में उपनिषदों का संक्षिप्त परिचय है। उपनिषदों पर लिखना आसान नहीं । विनोवाजी के विचार में “उपनिषद्‌ पुस्तक है ही नहीं। वह तो प्रातिभ-दर्शन हैं। उस दर्शन को यद्यपि शब्दों में प्रकट करने का प्रयोग किया गया है, फिरभी दब्दों के पेर लड़खड़ा गये है !” ग्यारह मुख्य उपनिषदों का संक्षिप्त सरल विवरण इस अध्याय में दिया गया है । आचाये विनोवा ने ईशोपनिपद्‌ के मंत्रों की जो ईशावास्य बोधनाम से तात्विक व्याख्या की है उसे हमने अविवाल रूप में इस अध्याय में उद्धृत किया है । उपनिपदों में से कुछ कथाएँ भी हमने उद्धुत की हैं, जैसे नचिकेता, जावाल- सत्यकाम, ब्रह्यज्ञानी रवव, अदवपति का ब्रह्मोपदेश आदि । इन कथायं के वहाने ब्रह्मविद्या का विवेचन ओर निरूपण अरूग-भलग प्रकार से बड़ी सुन्दर शैली में




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