विद्याष्टकम् | Vidyashtakam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| विद्याष्टकम् कल
है- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज | सस्कृत व हिन्दी मे अनेक स्वतन्त्र कृतियो के रचयिता
एवं अनेक प्राचीन प्राकृत-सस्कृत रचनाओ के मौलिक-अनुवादक,तपोनिधि आचार्य विद्यासागरजी
भारतीय ऋषि-मुनियो की उसी सतत द्युतिमान-आकाश गड्ढ़ा के एक जाज्वल्यमान नक्षत्र है | वे
नेष्ठिक दिगम्बर मुनि आचार के साक्षात् आदर्श है | अपने स्वर्गीय गुरुवर आचार्य ज्ञानसागरजी
महाराज के सत्यपूत तत्त्वज्ञ शिष्य है | और मोक्षगामी धर्मरथ के अश्वकी वल्गा को धारण करने
वाले वास्तविक सारथी है ।
बालपने मे पूर्वसस्कारजन्य वैराग्यभावना से प्रेरित आचार्य विद्या सागरजी महाराज ने गुरुमुख
से प्राप्त जैन तत्वज्ञान को अपनी असाधारण प्रज्ञा से श्रुत-महोदधि मे गहरी इुबकी लगाकर आत्मसात्
किया । तप, स्वाध्याय ओर ध्यान के त्रिविध उत्स मे से विद्या के सागर आचार्यप्रवर की सवेदनशीन
मेधा नित-नूतन अध्यात्म ओर भक्तिश्रवण काव्यसरित् प्रवाह के रूप मे बह निकली ओर निरन्तर
नये-नये स्तोत्रो, शतको के रूप मे वर्धमान होती रही । कुन्दकुन्दादि प्राचीन आचार्यो के मूल प्राप्त
आगम ग्रन्थो के सुमधुर छन्दोबद्ध॒हिन्दी पद्य-रूपान्तर, सस्कृत मे स्वरचित भक्ति, वैराग्य एव
अध्यात्ममय शतक तथा उन शतको के स्वरचित हिन्दी भावानुवाद उनकी उसी काव्यसरित् के अगीभूत
स्तोत्र टै ।
गुरु स्तुत्य टै । स्तुतिकर्ता केवल स्तवन करके हटनेवाले सासारिक जीव नहीरहै। वे स्वय
परिग्रह से मुक्त सन्यासी है । इस साधुत्व के साथ एक ओर चमत्कारी गण उन्हे प्राप्त है- वह
है कवित्व । वे कवि के रूप मे जपने जाराध्य गुरु आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की स्तुति
चित्र-काव्य के द्वारा कर रहे है जिसका शीर्षक है- 'विद्याष्टकम्' ।
यह रचना संस्कृत मे ই | अनेकार्थ- विधा से सम्पन्न है । इसलिए साधुत्व ओर कवित्व
शक्ति के साथ-साथ विद्वता के भी दर्शन इस काव्य मे होते है ।
इस प्रकार के चित्रकाव्य की रचना आजकन नही होती है । इसे रचना कौशल कहे या
प्रतिभाविलास जो एक सनन््यासी के मन मे भी उदित होता है | इसका अर्थ यह हुआ कि लौकिक
काम क्रोधादि भावो का उदात्तीकरण होने के कारण ही एक सन्यासी भी काव्य-चमत्कार के माध्यम
से रसान्वित हो सकता है | रस इस अर्थ मे भी ब्रह्मानन्द सहोदर है । कई सन्तो ओर योगियो
ने काव्य की रचना की है। ज्ञानेश्वर, नामदेव, कबीर, तुलसी, सूर, रामदास, तुकाराम, कम्ब,
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